भूख हड़ताल से बड़ा धमाका – कुनबी प्रमाण पत्र पर बवाल क्यों?

महाराष्ट्र में धमाकेदार ट्विस्ट! जरांगे पाटिल की भूख हड़ताल ने तोड़ा सरकार का दिमाग, अब मराठों को मिलेगा कुनबी प्रमाण पत्र - OBC कोटे में छिड़ा तूफान!

लेखक: आज की ताज़ा खबर NEWS - 4 सितंबर 2025

मनोज जरांगे ने भूख हड़ताल खत्म कर दी है

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर से मराठा आरक्षण का मुद्दा गर्मा गया है और इस बार तो ऐसा धमाका हुआ है कि पूरे राज्य की सियासत हिल के रख दी गयी है। मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल की डेढ़ साल के अंदर दूसरी भूख हड़ताल ने सरकार को ऐसा झटका दिया कि उन्हें तुरंत एक बड़ा और अहम फैसला लेना पड़ा। सरकार ने आखिरकार मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया को हरी झंडी दे दी है, जिसके बाद अब मराठा समुदाय के लोगों को OBC कोटे का लाभ मिल सकेगा। ये फैसला कितना ऐतिहासिक है और इसके पीछे क्या कहानी है, ये जानना बेहद जरूरी है।

जरांगे पाटिल की भूख हड़ताल ने जैसे ही अपना असर दिखाना शुरू किया, सरकार के पसीने छूट गए। 

उनकी इस हड़ताल ने न केवल सरकार को घेरा बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र को हिलाकर रख दिया। लोग सड़कों पर उतर आए और मराठा आरक्षण की मांग जोर पकड़ने लगी। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि वह किस तरह से इस मुद्दे को शांत करे और जरांगे पाटिल की मांगों को पूरा करे। आखिरकार सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए मराठों को कुनबी प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया शुरू कर दी।

ये पूरा मामला काफी पेचीदा है और इसे समझने के लिए हमें पीछे जाना होगा। साल 2024 की शुरुआत में ही सरकार ने इस दिशा में पहला कदम उठाया था। 26 जनवरी 2024 को एक मसौदा अधिसूचना जारी की गई थी जिसमें कुनबी वंश से आने वाले मराठों को प्रमाण पत्र दिए जाने का रास्ता साफ किया गया था। इस अधिसूचना में पारिवारिक रिश्तों को साबित करने पर जोर दिया गया था। आवेदकों को अपने पैतृक रिश्तेदारों और ऋषि सोयारे यानी एक ही जाति में शादी से बने रिश्तेदारों के बारे में जानकारी देनी थी।

लेकिन उस समय यह अधिसूचना सिर्फ एक मसौदा थी और इसे लेकर जनता की राय मांगी गई थी। 16 फरवरी 2024 तक लोग इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते थे। लेकिन इसी बीच जरांगे पाटिल ने फिर से आवाज उठाई और भूख हड़ताल शुरू कर दी। उनकी इस हड़ताल ने सरकार पर दबाव बनाया और आखिरकार तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ हुई बातचीत के बाद 27 जनवरी 2024 को उन्होंने अपनी हड़ताल खत्म कर दी। लेकिन ये समस्या का स्थाई समाधान नहीं था।

इसके बाद सरकार ने इस मुद्दे पर गंभीरता से काम करना शुरू किया और आखिरकार 2 सितंबर 2025 को एक नया सरकारी प्रस्ताव यानी जीआर जारी किया गया। ये जीआर जरांगे पाटिल की पांच दिन की भूख हड़ताल खत्म होने के तुरंत बाद आया जो कि सरकार की मजबूरी और इस मुद्दे की गंभीरता को दिखाता है। इस नए जीआर में एक सुव्यवस्थित और पारदर्शी प्रक्रिया शुरू की गई है जिसका मुख्य फोकस मराठवाड़ा क्षेत्र के मराठों पर है।

नए जीआर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें ऐतिहासिक दस्तावेजों को प्रमाण के तौर पर स्वीकार किया गया है। 1918 के हैदराबाद गजट जैसे ऐतिहासिक अभिलेखों को कुनबी वंश के प्रमाण के रूप में मान्यता दी गई है। इससे उन लोगों को फायदा होगा जिनके पास पारिवारिक दस्तावेज नहीं हैं लेकिन ऐतिहासिक रिकॉर्ड में उनके पूर्वजों का जिक्र मिलता है। ये एक बहुत बड़ा बदलाव है और इससे कई लोगों को लाभ मिलने की उम्मीद है।

प्रक्रिया को और भी पारदर्शी बनाने के लिए ग्राम-स्तरीय पैनल बनाए गए हैं। इस पैनल में ग्राम सेवक, तलाठी और कृषि अधिकारी जैसे लोग शामिल हैं जो आवेदक के भूमि अभिलेखों और वंशावली दस्तावेजों की जांच करेंगे। इसके बाद जिला-स्तरीय समितियां हैं जो इन प्रमाण-पत्रों को मंजूरी देंगी। इस पूरी प्रक्रिया में अपील का विकल्प भी रखा गया है और धोखाधड़ी करने वालों के लिए सख्त दंड का प्रावधान भी है।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर 2024 की अधिसूचना और 2025 के जीआर में क्या अंतर है। दरअसल 2024 की अधिसूचना में पारिवारिक संबंधों पर जोर दिया गया था जबकि 2025 के जीआर में ऐतिहासिक साक्ष्यों और एक औपचारिक व्यवस्था को प्राथमिकता दी गई है। 2024 का दस्तावेज एक मसौदा था जबकि 2025 का जीआर एक अमली कदम है जिसे लागू किया जा रहा है। इससे साफ है कि सरकार ने इस मुद्दे पर गंभीरता से काम किया है।

लेकिन इस पूरे फैसले ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। OBC समुदाय के नेता और कार्यकर्ता इस फैसले से खफा हैं और उन्होंने इसे सीधे तौर पर OBC कोटे पर हमला बताया है। उनका कहना है कि मराठों को OBC कोटे में शामिल करने से मौजूदा OBC समुदाय के लोगों का नुकसान होगा क्योंकि कोटा सीमित है और उसे अब और लोगों में बांटना पड़ेगा। इससे समुदायों के बीच तनाव बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है।

OBC नेताओं का यह भी मानना है कि सरकार ने जल्दबाजी में यह फैसला लिया है और इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उन्हें डर है कि शिक्षा और नौकरी के सीमित अवसरों पर अब और ज्यादा दबाव होगा और OBC समुदाय के लोग पीछे रह जाएंगे। इसने राजनीति में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है और आने वाले दिनों में इस पर जोरदार बहस होने की उम्मीद है।

वहीं मराठा समुदाय के लोग इस फैसले से काफी खुश हैं और इसे अपनी बड़ी जीत के तौर पर देख रहे हैं। उनका कहना है कि लंबे समय से उन्हें आरक्षण का इंतजार था और अब finally उनकी मांग पूरी हो गयी है। जरांगे पाटिल की भूख हड़ताल ने इस मांग को और तेज कर दिया था और अब सरकार के फैसले के बाद उन्हें लग रहा है कि उनका संघर्ष सफल हुआ है। हालांकि अभी भी कई लोग हैं जो इसे लेकर संशय में हैं।

सवाल यह है कि आखिर कुनबी प्रमाण पत्र है क्या और ये इतना जरूरी क्यों है। दरअसल कुनबी एक ऐसी जाति है जिसे OBC श्रेणी में रखा गया है। ऐतिहासिक तौर पर मराठा और कुनबी के बीच गहरे रिश्ते रहे हैं और कई मराठा परिवार खुद को कुनबी वंश का मानते हैं। अगर कोई मराठा व्यक्ति यह साबित कर दे कि उसके पूर्वज कुनबी थे तो उसे OBC का प्रमाण पत्र मिल सकता है और फिर वह OBC कोटे का लाभ उठा सकता है।

यही वजह है कि मराठा आरक्षण की मांग करने वाले लोग कुनबी प्रमाण पत्र पर इतना जोर दे रहे थे। उनका मानना था कि इसी रास्ते से उन्हें आरक्षण मिल सकता है। अब सरकार ने इस प्रक्रिया को आसान बना दिया है तो निश्चित तौर पर इससे मराठा समुदाय को फायदा होगा। लेकिन साथ ही साथ OBC समुदाय की चिंताएं भी वाजिब हैं क्योंकि कोटा एक सीमित संसाधन है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार ने यह फैसला राजनीतिक दबाव में लिया है और इसके पीछे जरांगे पाटिल की भूख हड़ताल का सीधा असर है। सरकार चाहती थी कि वह इस मुद्दे को शांत करे और मराठा समुदाय को खुश करे जो कि राज्य की राजनीति में एक बहुत बड़ा वोट बैंक है। लेकिन इस फैसले ने OBC समुदाय को नाराज कर दिया है जो कि एक और बड़ा वोट बैंक है। इस तरह सरकार दोनों तरफ से फंस गयी है।

आने वाले समय में इस फैसले के क्या परिणाम होंगे, यह तो time ही बताएगा। लेकिन इतना तो तय है कि इसने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ पैदा कर दिया है। अदालतों में भी इस फैसले को चुनौती दिए जाने की उम्मीद है और हो सकता है कि ये मामला एक बार फिर से कोर्ट तक पहुंच जाए। OBC संगठन पहले ही कोर्ट का रुख कर चुके हैं और अब मराठा आरक्षण का ये नया रास्ता भी judicial review से गुजरेगा।

सरकार ने अपने फैसले में पारदर्शिता और निष्पक्षता का दावा किया है लेकिन विपक्षी दल इसे एक राजनीतिक चाल बता रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार ने बिना सोचे समझे यह फैसला लिया है और इससे राज्य में समुदायिक तनाव फैल सकता है। उन्होंने सरकार से इस फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की है लेकिन अभी तक सरकार ने कोई पलटी नहीं खायी है।

जरांगे पाटिल ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे मराठा समुदाय की बड़ी जीत बताया है। उन्होंने कहा है कि अब मराठा youth को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण का लाभ मिलेगा और उनका भविष्य उज्जवल होगा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि अगर सरकार इस वादे को पूरा नहीं करती है तो वे फिर से आंदोलन शुरू कर देंगे। इस तरह सरकार पर दबाव बना हुआ है।

सामाजिक ताने-बाने पर इस फैसले का क्या असर होगा,

 ये एक बड़ा सवाल है। महाराष्ट्र हमेशा से ही एक progressive राज्य रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों में आरक्षण को लेकर यहां के social fabric पर दबाव बढ़ा है। अलग-अलग समुदायों के बीच competition बढ़ गया है और trust कम हो गया है। सरकार के इस फैसले से ये competition और भी बढ़ सकता है जो कि चिंता का विषय है।

शिक्षा और employment के क्षेत्र में इसके क्या परिणाम होंगे, ये देखना दिलचस्प होगा। government jobs और educational institutions में OBC कोटा अब मराठा applicants के साथ share होगा। इससे competition और tough हो जाएगा और cut-off marks भी प्रभावित होंगे। OBC category के students और job seekers को अब ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि seats limited हैं और applicants की संख्या बढ़ गयी है।

अर्थव्यवस्था पर भी इसके indirect effects देखने को मिल सकते हैं।

 अगर unemployment बढ़ती है और social unrest फैलता है तो इसका असर investment और economic growth पर पड़ेगा। industries महाराष्ट्र में invest करने से हिचकिचा सकती हैं अगर यहां का law and situation ठीक नहीं रहता। इस तरह ये फैसला सिर्फ एक social या political issue नहीं बल्कि एक economic issue भी बन गया है।

मीडिया और civil society की भूमिका इस मामले में बहुत important हो गयी है। उन्हें balanced reporting करनी चाहिए और दोनों पक्षों की बात को fair तरीके से present करना चाहिए। sensationalism से बचना चाहिए क्योंकि इससे situation और खराब हो सकती है। constructive dialogue और peaceful discussion को encourage करना चाहिए ताकि एक सहमति बन सके।

युवाओं पर इसका क्या psychological effect पड़ेगा, ये भी देखने वाली बात होगी। एक तरफ मराठा youth को लगेगा कि उन्हें finally justice मिल गया है तो दूसरी तरफ OBC youth feel कर सकते हैं कि उनके rights छीने जा रहे हैं। इससे frustration और anger पैदा हो सकती है जो कि healthy नहीं है। counselors और teachers को students के साथ discuss करना चाहिए और उन्हें positive रास्ता दिखाना चाहिए।

सरकार ने जो process शुरू की है उसकी monitoring और implementation बहुत important होगी। अगर प्रमाण पत्र बिना proper verification के distributed किए गए तो fraud cases बढ़ेंगे और genuine applicants का नुकसान होगा। government machinery को efficient और corruption-free तरीके से काम करना होगा तभी इसका सही benefit मिल पाएगा। otherwise ये एक और controversy बन सकता है।

राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार की भी इस मामले में important भूमिका है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह राज्य सरकार के साथ coordinate करे और necessary legal और constitutional guidance provide करे। क्योंकि reservation एक constitutional matter है और इसे लेकर Supreme Court के guidelines हैं। उनका पालन करना जरूरी है वरना court में ये फैसला खड़ा नहीं हो पाएगा।

अंत में, ये कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र सरकार का ये फैसला एक बहुत बड़ा और bold step है जिसके far-reaching consequences होंगे। इसने मराठा समुदाय की long-pending demand को पूरा किया है लेकिन साथ ही एक new controversy भी पैदा कर दी है। अब ये राज्य सरकार की responsibility है कि वह इस process को transparent और fair तरीके से manage करे और सभी stakeholders के concerns को address करे। आने वाले time में ये देखना interesting होगा कि ये फैसला social harmony को promote करता है या conflict को बढ़ावा देता है।

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