गोर बंजारा आंदोलन: आरक्षण की जंग ने बढ़ाई महाराष्ट्र की सियासी तपिश!

गोर बंजारा आंदोलन: महाराष्ट्र में आरक्षण की आग, "एक गोर सव्वा लाखेर जोर" के नारे से गूंज उठा पूरा राज्य!

🔥 महाराष्ट्र में आरक्षण की आग —
गोर बंजारा समाज का सड़कों पर गुस्सा!
“एक गोर सव्वा लाखेर जोर” के नारों से गूंजा पूरा राज्य 💥
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गोर बंजारा आंदोलन महाराष्ट्र में तहलका मचा रहा है! एसटी आरक्षण की मांग को लेकर ठाणे से लेकर यवतमाळ तक हज़ारों लोग सड़कों पर उतरे। जानिए इस ऐतिहासिक आंदोलन की पूरी कहानी और अगला मोर्चा कहाँ टूटेगा। Gor Banjara Andolan ST Reservation Demand Maharashtra Latest News.

यह एक ऐसी आग है जो सितंबर महीने की शुरुआत से ही महाराष्ट्र के कोने-कोने में धधक रही है और अब तो इसकी लपटें राज्य सरकार के गलियारों तक को चाटने लगी हैं। गोर बंजारा समाज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हुए सड़कों पर उतर आया है और उसकी एक ही मांग है - राज्य में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा और उसके साथ जुड़े आरक्षण का अधिकार। यह गोर बंजारा आंदोलन कोई एक या दो दिन का प्रदर्शन नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र में फैला एक जनआक्रोश है जिसमें अब तक 50 से ज्यादा शहरों और कस्बों में मोर्चे निकल चुके हैं और हर नए दिन के साथ यह और ताकत पकड़ता जा रहा है। इस गोर बंजारा आंदोलन की शुरुआत सितंबर के पहले हफ्ते में हुई और देखते ही देखते यह एक जनांदोलन में बदल गया जिसमें हजारों की संख्या में महिलाएं, पुरुष और युवा अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सड़कों पर उतर आए और "एक गोर सव्वा लाखेर जोर" के नारों से पूरे महाराष्ट्र को हिलाकर रख दिया।

हैदराबाद गजट का सवाल और बंजारा समाज का गुस्सा

इस पूरे गोर बंजारा आंजोदलन की जड़ में है एक ऐतिहासिक दस्तावेज - हैदराबाद गजट। दरअसल जब महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को हैदराबाद गजट के आधार पर ओबीसी आरक्षण देने का फैसला किया तो बंजारा समाज में रोष फैल गया। बंजारा नेता हरिभाऊ राठोड साफ कहते हैं कि "हैदराबाद गॅझेटनुसार बंजारा समाज 'आदिम जमात' म्हणून नोंदवलेला आहे। मराठा समाजाला ओबीसी प्रमाणपत्रासाठी हेच गॅझेट ग्राह्य धरले गेले, मग आम्हालाच डावलले का?"  यही सवाल इस पूरे गोर बंजारा आंदोलन की बुनियाद बना क्योंकि बंजारा समाज का कहना है कि अगर एक समुदाय के लिए हैदराबाद गजट मान्य है तो दूसरे के लिए क्यों नहीं। इस गोर बंजारा आंदोलन में इतना ताकतवर इसलिए भी हो गया क्योंकि बंजारा समाज खुद को मूल रूप से आदिवासी मानता है और उसकी तांडा जीवनशैली, गीत-संगीत, वेशभूषा और रीति-रिवाज सभी आदिवासी पहचान को दर्शाते हैं .

उमरखेड से शुरू हुई चिंगारी और पूरे महाराष्ट्र में फैली आग

इस गोर बंजारा आंदोलन की शुरुआत 10 सितंबर को उमरखेड से हुई जहां बंजारा समाज ने पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे हजारों लोगों के साथ उपविभागीय कार्यालय पर धरना दिया . इसके बाद तो यह आंदोलन एक जंगल की आग की तरह पूरे महाराष्ट्र में फैल गया। 11 सितंबर को यवतमाल के महानायक वसंतराव नाईक चौक पर बंजारा समाज ने जिला कलेक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को ज्ञापन सौंपा . 15 सितंबर को जालना और बीड में एक साथ मोर्चे निकाले गए जहां बंजारा युवाओं ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल भी शुरू की . 24 सितंबर को आर्णी में एक विशाल महामोर्चा निकाला गया जिसमें हजारों कार्यकर्ताओं और नागरिकों ने हिस्सा लिया . और 25 सितंबर को बुलढाणा में तो इतना बड़ा मोर्चा निकला कि पूरा शहर थम सा गया जहां "एक गोर सव्वा लाखेर जोर" के नारों से आसमान गूंज उठा .

ठाणे में जब जिल्हाधिकारी कार्यालय पर टूटा मोर्चा

4 अक्टूबर को यह गोर बंजारा आंदोलन ठाणे तक पहुंच गया जहां कापूरबावडी से शुरू होकर एक विशाल मोर्चा ठाणे जिल्हाधिकारी कार्यालय तक पहुंचा . इस मोर्चे में शेकडो बंजारा महिलाओं, पुरुषों और युवाओं ने अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहनकर हिस्सा लिया और "आरक्षण आमचं हक्काचं, नाही कुणाच्या बापाचं" जैसे जोरदार नारों से अपना गुस्सा जाहिर किया . इस मोर्चे को संबोधित करते हुए माजी खासदार हरिभाऊ राठोड ने साफ चेतावनी दी कि यह सिर्फ एक शुरुआत है और अगर सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो 17 अक्टूबर को मुंबई के शिवाजी पार्क में अंतिम एल्गार होगा जो सरकार को समाज की ताकत का अहसास करा देगा . यह ठाणे का मोर्चा इस गोर बंजारा आंदोलन की एक अहम कड़ी साबित हुआ क्योंकि यह महाराष्ट्र की आर्थिक राजधानी के इतने करीब था।

बंजारा युवाओं का आक्रोश और आत्महत्या का मामला

इस गोर बंजारा आंदोलन ने जिस तरह से युवाओं को प्रभावित किया है वह सबसे ज्यादा चौंकाने वाला है। जालना में बंजारा युवाओं ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है . लेकिन सबसे दुखद घटना धाराशिव की है जहां एक 32 साल के बंजारा स्नातक ने आत्महत्या कर ली और अपने पीछे एक नोट छोड़ा जिसमें एसटी आरक्षण की मांग की गई थी . इस घटना ने पूरे गोर बंजारा आंदोलन में एक नई जान फूंक दी और युवाओं में और भी आक्रोश पैदा कर दिया। यह घटना इस बात का सबूत है कि यह सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं बल्कि बंजारा युवाओं के भविष्य और उनकी जिंदगी से जुड़ा सवाल बन चुका है। बंजारा युवा खुद को शिक्षा, नौकरी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में पिछड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं और उनका मानना है कि एसटी दर्जा मिलने से उन्हें मुख्यधारा में शामिल होने का मौका मिलेगा .

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और अन्य राज्यों का उदाहरण

इस गोर बंजारा आंदोलन को समझने के लिए ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जानना बहुत जरूरी है। बंजारा समाज अपनी मांग के पक्ष में कई ऐतिहासिक दस्तावेज पेश कर रहा है। हैदराबाद गजट 1918 और सातारा गजट 1963 में बंजारा समाज को आदिवासी समुदाय के रूप में दर्ज किया गया है . सबसे बड़ी बात यह है कि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार और तेलंगाना जैसे राज्यों में बंजारा समाज को पहले से ही अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है . बंजारा नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जब हैदराबाद गजट के आधार पर मराठा समुदाय को ओबीसी आरक्षण दिया जा सकता है तो उन्हें भी एसटी आरक्षण क्यों नहीं दिया जा सकता। उनका तर्क है कि 1948 में राज्य पुनर्गठन के बाद मराठवाड़ा के महाराष्ट्र में शामिल होने के साथ ही बंजारा समाज का एसटी दर्जा छिन गया जबकि वे पहले से ही हैदराबाद राज्य में एसटी आरक्षण का लाभ ले रहे थे .

महाराष्ट्र सरकार के सामने चुनौती और विरोध का स्वर

यह गोर बंजारा आंदोलन महाराष्ट्र सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है क्योंकि एक तरफ जहां मराठा आरक्षण का मुद्दा अभी ठंडा भी नहीं हुआ है वहीं दूसरी तरफ बंजारा समाज ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन तेज कर दिया है। सरकार पर दोनों तरफ से दबाव है और उसे एक संतुलन बनाने की कोशिश करनी होगी। बंजारा समाज के नेता लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि अगर सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो वे अपना आंदोलन और तेज कर देंगे . हरिभाऊ राठोड ने साफ कहा है कि "सरकारने तातडीने बंजारा समाजाचा अनुसूचित जमातीत समावेश करताच जीआर काढावा, अन्यथा आंदोलन आणखी तीव्र करण्यात येईल" . इसके अलावा ओबीसी और आदिवासी संगठन भी बंजारा समाज की मांग का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनके आरक्षण को नुकसान पहुंचेगा . ओबीसी कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि आरक्षण बढ़ाने से ओबीसी श्रेणी में पहले से सूचीबद्ध 374 जातियों के अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे .

आंदोलन की रणनीति और भविष्य की योजना

यह गोर बंजारा आंदोलन किसी सहज या अनायास शुरू हुआ आंदोलन नहीं बल्कि एक सुनियोजित और संरचित आंदोलन है जिसकी रणनीति बहुत साफ दिखाई दे रही है। समाज के नेताओं ने पहले ही पूरे महाराष्ट्र के लिए एक कार्यक्रम तैयार कर लिया था जिसमें अलग-अलग तारीखों में अलग-अलग शहरों में मोर्चे निकाले जाने थे . उमरखेड से शुरू हुआ यह सिलसिला लातूर, यवतमाळ, परभणी, जळगाव, धुळे, नाशिक, वर्धा और अलिबाग तक जारी रहा और अब इसका अंतिम पड़ाव 17 अक्टूबर को मुंबई के शिवाजी पार्क में होगा . इस तरह की योजनाबद्ध रणनीति से सरकार पर लगातार दबाव बनाया जा सकता है और आंदोलन को मीडिया में लगातार कवरेज भी मिलती रहती है। बंजारा समाज के नेता इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि सरकार पर दबाव बनाए रखने के लिए आंदोलन को लगातार जारी रखना कितना जरूरी है।

बंजारा महिलाओं की भूमिका और सांस्कृतिक पहचान

इस गोर बंजारा आंदोलन की एक खास बात यह है कि इसमें महिलाओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया है और वे अपनी पारंपरिक वेशभूषा में ही प्रदर्शनों में शामिल हो रही हैं . बुलढाणा के मोर्चे में तो महिलाओं और युवतियों की पारंपरिक वेशभूषा आकर्षण का केंद्र बनी रही . यह दिखाने के लिए महत्वपूर्ण है कि यह आंदोलन सिर्फ पुरुषों का नहीं बल्कि पूरे समाज का आंदोलन है। बंजारा समाज अपनी सांस्कृतिक पहचान पर बहुत गर्व करता है और वे इसे इस आंदोलन के जरिए पूरी दुनिया के सामने लाना चाहते हैं। उनकी तांडा जीवनशैली, गीत-संगीत, नृत्य, वेशभूषा और पूजा पद्धतियां सभी आदिवासी ओळख को रेखांकित करती हैं . इस आंदोलन में सांस्कृतिक पहचान को इस तरह शामिल करना लोगों में एक अलग तरह का जोश पैदा कर रहा है और आंदोलन को सिर्फ आरक्षण तक सीमित नहीं रहने दे रहा बल्कि इसे एक सांस्कृतिक अधिकारों की लड़ाई बना रहा है।

गोर बंजारा आंदोलन का राजनीतिक प्रभाव

यह गोर बंजारा आंदोलन महाराष्ट्र की राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल सकता है क्योंकि बंजारा समाज राज्य की एक बड़ी जनसंख्या है और उसके वोटों का महत्व किसी भी पार्टी के लिए नजरअंदाज करने जैसा नहीं है। महाराष्ट्र सरकार पहले ही मराठा आरक्षण के मुद्दे पर उलझी हुई है और अब बंजारा समाज का यह आंदोलन उसके लिए दोहरी मुसीबत खड़ी कर सकता है। बंजारा नेताओं ने साफ कह दिया है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे सरकार के खिलाफ खड़े हो जाएंगे और अगले चुनावों में इसका असर देखने को मिलेगा। इस आंदोलन ने अब तक 50 से ज्यादा शहरों को अपनी चपेट में ले लिया है जो यह दिखाने के लिए काफी है कि बंजारा समाज कितना संगठित और गंभीर है। सरकार के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह कैसे दोनों समुदायों को संतुष्ट करने का कोई रास्ता निकालती है क्योंकि अगर एक को दिया गया तो दूसरा नाराज हो जाएगा और अगर किसी को नहीं दिया गया तो दोनों नाराज हो जाएंगे।

आंदोलन की अगली रणनीति और मुंबई का अंतिम मोर्चा

अब सबकी नजर 17 अक्टूबर पर टिकी हुई है जब यह गोर बंजारा आंदोलन अपने चरम पर पहुंचेगा और मुंबई के शिवाजी पार्क में एक विशाल मोर्चा निकाला जाएगा . बंजारा नेता इसे "अंतिम एल्गार" का नाम दे रहे हैं और साफ कर रहे हैं कि अगर सरकार ने इससे पहले उनकी मांगों पर कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया तो यह मोर्चा ऐतिहासिक होगा . इस मोर्चे की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं और उम्मीद की जा रही है कि महाराष्ट्र के कोने-कोने से लाखों की संख्या में लोग इसमें शामिल होंगे। बंजारा समाज के नेता इस मोर्चे को सफल बनाने के लिए पूरी तैयारी कर रहे हैं और सोशल मीडिया के जरिए लोगों को जोड़ने का काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि यह मोर्चा सरकार को समाज की ताकत का अहसास करा देगा और उन्हें अपनी मांगें मानने पर मजबूर कर देगा। बंजारा समाज ने यह साफ कर दिया है कि यह उनकी अंतिम लड़ाई है और वे इसे हर कीमत पर जीतकर रहेंगे।

गोर बंजारा आंदोलन का सामाजिक प्रभाव

इस गोर बंजारा आंदोलन का सामाजिक प्रभाव बहुत गहरा है क्योंकि यह सिर्फ एक समुदाय तक सीमित नहीं रहा बल्कि इसने पूरे महाराष्ट्र का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस आंदोलन ने राज्य में आरक्षण की बहस को फिर से शुरू कर दिया है और सवाल उठाया है कि कौन आरक्षण का हकदार है और कौन नहीं। बंजारा समाज का तर्क है कि वे ऐतिहासिक रूप से पिछड़े हुए हैं और उन्हें विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण जरूरी है। उनका कहना है कि एसटी दर्जा न मिलने के कारण शिक्षा, नौकरी और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में बंजारा युवा पिछड़ गए हैं और समाज आज भी मुख्य प्रवाह से दूर है . इस आंदोलन ने समाज के भीतर एक नई चेतना पैदा की है और लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया है। बंजारा समाज के लोग अब पहले से कहीं ज्यादा जागरूक और संगठित दिखाई दे रहे हैं और वे अपनी मांगों को लेकर किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं हैं।

गोर-बंजारा आंदोलन,महाराष्ट्र राज्य 

1.गंगाखेड ……………….11 सप्टेंबर 

2.उमरखेड* .,...............13 सप्टेंबर

3.जालना* ..................15 सप्टेंबर

4.बीड* ..................... 15 सप्टेंबर

5.दिग्रस* ................... 15 सप्टेंबर

6.तुळजापूर* .,.............16 सप्टेंबर

7.सोलापूर* ............... 16 सप्टेंबर

8.चाळीसगाव* ............17 सप्टेंबर

9.मानोरा* ...................17 सप्टेंबर

10किनवट माहूर* .........18 सप्टेंबर 

11पुणे* .................,...18 सप्टेंबर

12हिंगोली* .................19 सप्टेंबर

13.कन्नड* ...................19 सप्टेंबर

14.महागाव* ...............19 सप्टेंबर 

15.बांद्रा पूर्व मुंबई* .......19 सप्टेंबर

16.हिमायतनगर* .........19 सप्टेंबर

17.साक्री (धुळे)* .........19 सप्टेंबर

18.उमरगा* .................23 सप्टेंबर

19.लोहा* ...................23 सप्टेंबर 

20.मोर्शी* ..................23 सप्टेंबर 

21 हदगांव* ...............23 सप्टेंबर 

22 आर्णी* .................24 सप्टेंबर 

23 नांदगाव*...............24 सप्टेंबर  

24. बुलढाणा* .............25 सप्टेंबर

25. पुसद* ..................25 सप्टेंबर

26 राजगुरुनगर*......... 25 सप्टेंबर

27. दारव्हा* ............... 26 सप्टेंबर

28. औसा* .................26 सप्टेंबर

29. नांदेड* .................29 सप्टेंबर

30.वाशिम* ...............29 सप्टेंबर 

31 धाराशिव* ............29 सप्टेंबर

32. राजुरा* ................29 सप्टेंबर

33. जिवती(चंद्रपूर)* ....29 सप्टेंबर

34. शिरूर* ................29 सप्टेंबर 

35. अंबाजोगाई* .........3आक्टोबर

36.पैठण* * ..............3आक्टोबर

37. खुलताबाद* .........4 ऑक्टोबर

38. ठाणे* ..................4 ऑक्टोबर

39. यवतमाळ* .......... 6 ऑक्टोबर

40. अकोला* ............ 6 ऑक्टोबर

41. लातूर* ................6 ऑक्टोबर

42. अहिल्यानगर*........6 ऑक्टोबर

43. जळगाव* ............ 7 ऑक्टोबर

44. परभणी* ............ 7 ऑक्टोबर

45. वसई* ................ 7 ऑक्टोबर

46. आर्वी* ................ 7 ऑक्टोबर

47. धुळे* .................. 8 ऑक्टोबर

48. धाराशिव* ...........8 ऑक्टोबर

49. वर्धा* .................10 ऑक्टोबर

50. अलिबाग* .........10 ऑक्टोबर 

51. नाशिक* ............10 ऑक्टोबर 

52 छ. संभाजीनगर*. 14 ऑक्टोबर

53 पालघर* .............16 ऑक्टोबर


लवकरच. मुंबई (आझाद मैदान)..🏳️🏳️🏳️



 गर्व सें कहो....... गोर है हम 🏳️🏳️🏳️ start kido umarkhed end Kara Mumbai

निष्कर्ष: गोर बंजारा आंदोलन की सफलता और भविष्य

यह गोर बंजारा आंदोलन महाराष्ट्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है क्योंकि यह किसी एक समुदाय की लड़ाई नहीं बल्कि संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई बन गया है। बंजारा समाज ने साफ कर दिया है कि वह अब और चुप नहीं बैठेगा और अपने हक के लिए हर संभव लड़ाई लड़ेगा। 17 अक्टूबर को मुंबई के शिवाजी पार्क में होने वाला मोर्चा इस आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव होगा और इसके नतीजे पर सबकी नजर टिकी होगी। सरकार के सामने अब बहुत ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं और उसे कोई न कोई फैसला जल्द से जल्द लेना होगा। बंजारा समाज की मांग न्यायसंगत लगती है खासकर तब जब अन्य राज्यों में उन्हें पहले से ही एसटी दर्जा प्राप्त है और ऐतिहासिक दस्तावेज भी उनके पक्ष में हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि महाराष्ट्र सरकार इस चुनौती से कैसे निपटती है और क्या बंजारा समाज को उसका हक मिल पाता है या फिर यह आंदोलन और लंबा खिंच जाता है। एक बात तो तय है कि गोर बंजारा आंदोलन ने महाराष्ट्र की राजनीति और सामाजिक परिदृश्य पर एक गहरी छाप छोड़ी है और इसके effects लंबे समय तक देखने को मिलेंगे।

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FAQ (Frequently Asked Questions):

Q1. गोर बंजारा आंदोलन क्यों शुरू हुआ?
👉 समाज को OBC श्रेणी से हटाकर अलग वर्ग में डालने के विरोध में आंदोलन शुरू किया गया है।

Q2. "एक गोर सव्वा लाखेर जोर" नारे का क्या मतलब है?
👉 यह नारा गोर बंजारा समाज की एकता और संघर्ष की शक्ति को दर्शाता है।

Q3. क्या सरकार ने इस पर कोई प्रतिक्रिया दी है?
👉 हाँ, महाराष्ट्र सरकार ने समाज के प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू की है, लेकिन समाधान अभी बाकी है।

Q4. क्या आंदोलन शांतिपूर्ण है?
👉 अधिकांश जगहों पर आंदोलन शांतिपूर्ण है, लेकिन कुछ जिलों में प्रशासन ने सुरक्षा बढ़ा दी है।

Q5. क्या गोर बंजारा समाज को आरक्षण मिलेगा?
👉 इस पर अंतिम निर्णय सरकार और न्यायालय के आदेश के बाद ही होगा।


⚠️ अस्वीकरण (Disclaimer):

इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित है। हमारा उद्देश्य केवल समाचार जानकारी प्रदान करना है। किसी भी राजनीतिक या सामाजिक संगठन के प्रति हमारा कोई पक्षपात नहीं है। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी निर्णय से पहले आधिकारिक स्रोतों से जानकारी अवश्य सत्यापित करें।

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