महाराष्ट्र सरकार का बम फैसला! मराठों को मिला आरक्षण, लेकिन अंदर ही अंदर क्यों खफा है सरकार का अपना ही मंत्री? छगन भुजबल बोले - "CM फडणवीस से ऐसी उम्मीद नहीं थी"
महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐसा धमाका हुआ है जिसकी गूंज अब लंबे समय तक सुनाई देने वाली है। दरअसल, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने मराठा आरक्षण के मुद्दे पर एक बड़ा और साहसिक फैसला लेते हुए हैदराबाद गजट जारी किया है। इस गजट के जरिये मराठा समाज के लोगों को कुनबी जाति का दर्जा दे दिया गया है। यानी अब मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरियों में ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का लाभ मिलने का रास्ता साफ हो गया है। लेकिन ये फैसला इतना आसान नहीं है क्योंकि इसी फैसले ने सरकार के भीतर ही एक बड़ा तूफ़ान खड़ा कर दिया है।
छगन भुजबल का बड़ा बयान, सरकार के खिलाफ उतरे
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा और चौंकाने वाला रिएक्शन सरकार के अपने ही एक बड़े मंत्री का आया है। महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और ओबीसी समुदाय के एक बड़े नेता छगन भुजबल इस फैसले से सख्त नाराज नजर आ रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ कैबिनेट की बैठक से दूरी बनाई बल्कि सीधे तौर पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें सीएम फडणवीस से ऐसी उम्मीद नहीं थी। भुजबल ने आरोप लगाया कि ये फैसला लेते वक्त न तो पूरे मंत्रिमंडल को विश्वास में लिया गया और न ही ओबीसी समुदाय से कोई चर्चा की गई।
कोर्ट तक जाएंगे छगन भुजबल, लेंगे कानूनी रास्ता
छगन भुजबल की नाराजगी इतनी ज्यादा है कि उन्होंने इस फैसले के खिलाफ कोर्ट का रास्ता अपनाने की बात कह दी है। उन्होंने कहा कि उन्हें बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि सरकार मराठा समाज को लेकर ऐसा फैसला करेगी। उन्होंने ये भी कहा कि वो सोमवार को अपने वकीलों से सलाह लेंगे और इस मामले को कोर्ट में चुनौती देंगे। भुजबल का मानना है कि मराठा समाज को ओबीसी में शामिल करने से आरक्षण का पूरा संतुलन बिगड़ जाएगा और इसका सीधा नुकसान मौजूदा ओबीसी समुदाय को होगा।
क्या है पूरा मामला, क्यों मिला कुनबी दर्जा
असल में महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलन चल रहा था। मराठा आंदोलन के नेता मनोज जरांगे ने इसी मांग को लेकर अनशन भी शुरू कर दिया था। उनकी मुख्य मांग थी कि मराठा समाज को कुनबी के रूप में मान्यता दी जाए। कुनबी जाति पहले से ही ओबीसी श्रेणी में आती है और उन्हें आरक्षण का लाभ मिलता है। सरकार ने हैदराबाद गजट के जरिये यही किया और मराठा समुदाय को कुनबी जाति का दर्जा दे दिया। इस फैसले के बाद मनोज जरांगे ने अपना अनशन भी तोड़ दिया।
ओबीसी समुदाय में है गुस्सा, सरकार को डर
लेकिन इस फैसले ने दूसरे तरफ ओबीसी समुदाय को नाराज कर दिया है। ओबीसी नेताओं का कहना है कि अगर मराठा समुदाय को भी ओबीसी कोटे में शामिल कर लिया गया तो उनके हिस्से का आरक्षण कम हो जाएगा। इससे नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में उनकी भागीदारी पर बुरा असर पड़ेगा। छगन भुजबल का गुस्सा भी इसी बात को लेकर है। उन्हें लगता है कि सरकार ने बिना सोचे समझे जल्दबाजी में ये फैसला ले लिया है जिसका खामियाजा भविष्य में भुगतना पड़ सकता है।
सरकार ने बनाई कमेटी, शांत करने की कोशिश
छगन भुजबल के गुस्से और ओबीसी समुदाय की नाराजगी को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने एक और कदम उठाया है। सरकार ने एक छह सदस्यीय कैबिनेट उपसमिति बनाने का फैसला किया है। इस समिति में हर दल से दो दो मंत्री शामिल होंगे। इस समिति का मुख्य काम ओबीसी समुदाय की चिंताओं और शिकायतों का समाधान करना होगा। सरकार चाहती है कि मराठा समाज को आरक्षण देने से पहले से मौजूद ओबीसी वर्ग में कोई असंतोष न फैले।
क्या है कुनबी और मराठा का कनेक्शन
कुनबी और मराठा समुदाय के बीच एक ऐतिहासिक कनेक्शन रहा है। कुनबी समुदाय मराठा साम्राज्य की रीढ़ माना जाता था और इन्हें कृषक योद्धा के रूप में जाना जाता था। कई मराठा परिवारों की जड़ें कुनबी समुदाय से जुड़ी हुई हैं। सरकार ने इसी ऐतिहासिक पहलू का हवाला देते हुए मराठा समुदाय को कुनबी का दर्जा देने का फैसला किया है। लेकिन आलोचकों का मानना है कि ये सिर्फ आरक्षण पाने का एक जरिया बनकर रह गया है।
राजनीतिक हलचल तेज, क्या होगा आगे
इस पूरे फैसले ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ पैदा कर दिया है। एक तरफ जहां मराठा समुदाय में खुशी की लहर है वहीं दूसरी तरफ ओबीसी समुदाय सरकार के खिलाफ खड़ा होता नजर आ रहा है। छगन भुजबल जैसे बड़े ओबीसी नेता का सरकार के खिलाफ बोलना सरकार के लिए बड़ी मुश्किल पैदा कर सकता है। अब देखना ये है कि आखिर सरकार इस नए विवाद को कैसे संभालती है और छगन भुजबल की नाराजगी को कैसे शांत करती है।
सरकार के लिए बड़ी चुनौती बना मराठा आरक्षण
मराठा आरक्षण का मुद्दा पिछले कई सालों से महाराष्ट्र सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है। अलग अलग सरकारों ने इसको सुलझाने की कोशिश की लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया। अब फडणवीस सरकार ने एक कानूनी रास्ता अपनाते हुए मराठा समुदाय को कुनबी जाति का दर्जा देकर आरक्षण देना का फैसला किया है। लेकिन ये फैसला कितना कारगर साबित होगा ये तो अब कोर्ट और आने वाला वक्त ही बताएगा।
छगन भुजबल का अतीत, ओबीसी नेता की भूमिका
छगन भुजबल लंबे समय से ओबीसी समुदाय के एक बड़े नेता के तौर पर उभरे हैं। उन्होंने हमेशा ओबीसी हितों की बात की है और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाई है। इसीलिए जब सरकार ने बिना ओबीसी नेताओं से बात किए मराठा समुदाय को ओबीसी कोटे में शामिल करने का फैसला लिया तो भुजबल का नाराज होना स्वाभाविक था। उन्हें लगता है कि ये फैसला ओबीसी समुदाय के साथ अन्याय है।
मराठा समुदाय की प्रतिक्रिया, जश्न का माहौल
वहीं मराठा समुदाय में इस फैसले को लेकर जबरदस्त खुशी है। लंबे समय से चली आ रही मांग के बाद आखिरकार उन्हें आरक्षण मिल गया है। मराठा नेता मनोज जरांगे ने इस फैसले का स्वागत किया है और अपना अनशन खत्म कर दिया है। मराठा समुदाय का कहना है कि इस फैसले से उन्हें शिक्षा और रोजगार में बराबरी का मौका मिलेगा और उनका सामाजिक और आर्थिक विकास हो सकेगा।
कानूनी पचड़ा कितना मुश्किल करेगा काम
हालांकि इस फैसले का कानूनी पक्ष अभी भी कमजोर नजर आ रहा है। पहले भी मराठा आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है और कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। अब सरकार ने एक नया रास्ता निकाला है लेकिन छगन भुजबल जैसे नेता इसे कोर्ट में चुनौती देने वाले हैं। ऐसे में ये फैसला कितना टिकाऊ होगा ये कहना मुश्किल है। कानूनी experts का मानना है कि इसे कोर्ट में चुनौती मिल सकती है।
सरकार के सामने है बड़ी समस्या
अब महाराष्ट्र सरकार के सामने दोहरी चुनौती है। एक तरफ तो उसे मराठा समुदाय की उम्मीदों पर खरा उतरना है तो दूसरी तरफ ओबीसी समुदाय के गुस्से को शांत करना है। अगर सरकार ने ओबीसी नेताओं को मनाने में कोई कोताही की तो ये विवाद और भी बढ़ सकता है। छगन भुजबल का सरकार के खिलाफ कोर्ट जाना सरकार के लिए बड़ी शर्मिंदगी का कारण बन सकता है।
भविष्य में क्या होगा असर
इस पूरे फैसले का असर अगले कुछ दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति पर साफ दिखाई देगा। अगर ओबीसी समुदाय सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरता है तो सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वहीं अगर मराठा आरक्षण को कोर्ट से मंजूरी मिल जाती है तो ये सरकार के लिए एक बड़ी जीत साबित होगी। फिलहाल तो स्थिति बेहद नाजुक बनी हुई है और हर कोई सरकार के अगले कदम की तरफ देख रहा है।
जनता पर क्या पड़ेगा असर
आखिर में सबसे ज्यादा असर आम जनता पर ही पड़ने वाला है। आरक्षण के इस नए फैसले से शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में प्रवेश की प्रक्रिया और भी जटिल हो सकती है। ओबीसी और मराठा समुदाय के बीच तनाव बढ़ सकता है जिसका सीधा असर सामाजिक सौहार्द पर पड़ेगा। सरकार को चाहिए कि वो दोनों समुदायों के बीच समन्वय बनाए रखने की कोशिश करे और किसी भी तरह की हिंसा या तनाव को रोकने के लिए पहले से कदम उठाए।
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