'मांगें पूरी होने तक मुंबई नहीं छोड़ेंगे', मराठा आरक्षण आंदोलनकारियों को पुलिस नोटिस के बाद जरांगे का ऐलान
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| पुलिस ने जारी किया जरांगे पाटिल कोर कमेटी को नोटिस |
पुलिस का नोटिस और जरांगे का जवाब
ये कहानी शुरू होती है मंगलवार सुबह से, जब मुंबई पुलिस ने बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटिल को एक नोटिस जारी किया। इस नोटिस में कहा गया कि उन्होंने प्रदर्शन के नियमों का उल्लंघन किया है और उनसे आजाद मैदान तुरंत खाली करने को कहा गया। नोटिस में ये भी जोड़ा गया कि पुलिस ने जरांगे के मीडिया में दिए गए बयानों पर गौर किया है और वो भी इस नोटिस का हिस्सा हैं। लेकिन जरांगे पर इसका जरा भी असर नहीं हुआ। उल्टे, उन्होंने आजाद मैदान में अपने समर्थकों के सामने जोरदार भाषण दे डाला।
जान जाएगी तो जाने दो, मगर मुंबई नहीं छोड़ूंगा
जरांगे ने अपने भाषण में कहा, "हम यहाँ से टस से मस नहीं होंगे। हमारी मांगें पूरी होनी चाहिए। चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए, मैं मुंबई तब तक नहीं छोड़ूंगा जब तक हमारे मराठा समुदाय को उसका हक नहीं मिल जाता।" उन्होंने आगे कहा कि सरकार अगर मराठा समुदाय का सम्मान करेगी तो वे भी सरकार का सम्मान करेंगे। इसके साथ ही उन्होंने अपने सभी समर्थकों से शांति बनाए रखने और किसी भी तरह की हिंसा से दूर रहने की अपील की। ये बात अलग है कि पुलिस का कहना है कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण नहीं रहा है।
हाईकोर्ट ने दिखाई सख्ती, प्रदर्शनकारी कोर्ट पहुंचे
इससे पहले, सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले पर सख्त टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि ये मराठा आरक्षण प्रदर्शन शांतिपूर्ण नहीं रहा और इसने अनुमति की सभी शर्तों का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने जरांगे पाटिल और उनके समर्थकों को मंगलवार तक आजाद मैदान छोड़ने और मुंबई के अन्य इलाकों को खाली करने का अल्टीमेटम दिया था। महाराष्ट्र के महाधिवक्ता बिरेंद्र सराफ ने कोर्ट को बताया कि प्रदर्शनकारियों ने हर नियम तोड़ा है और अनुमति से ज्यादा समय से आजाद मैदान में डटे हुए हैं। इसके जवाब में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है। आयोजक वीरेंद्र पवार के मुताबिक, वकील सतीश मानेशिंदे अदालत में उनका पक्ष रखेंगे।
पुलिस की अनुमति नहीं, फिर भी जमावड़ा
दरअसल, प्रदर्शन के लिए पुलिस ने जो अनुमति दी थी, वो सिर्फ एक दिन के लिए थी और उसमें अधिकतम 5,000 लोगों की सीमा तय की गई थी। लेकिन जरांगे पाटिल के नेतृत्व में करीब 35,000 से 45,000 प्रदर्शनकारी मुंबई पहुंच गए। इतना ही नहीं, उन्होंने आजाद मैदान के साथ-साथ आसपास की सड़कों like CST, मरीन ड्राइव, और पी डी'मेलो रोड को भी ब्लॉक कर दिया। इससे दक्षिण मुंबई में भारी ट्रैफिक जाम की स्थिति पैदा हो गई और आम जनता को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पुलिस ने बताया कि प्रदर्शन जारी रखने के लिए अनुमति बढ़ाने का जो आवेदन किया गया था, उसे मंगलवार सुबह खारिज कर दिया गया और प्रदर्शनकारियों को सड़कें खाली करने का निर्देश दिया गया।
जरांगे की मांग क्या है
अब सवाल ये उठता है कि आखिर जरांगे की मांग क्या है। दरअसल, मनोज जरांगे पाटिल मराठा समुदाय के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी श्रेणी के तहत 10% आरक्षण की मांग कर रहे हैं। उनकी खास मांग ये है कि मराठवाड़ा क्षेत्र के सभी मराठों को कुंभी के रूप में मान्यता दी जाए और उन्हें ओबीसी कोटा का लाभ देने के लिए सरकारी प्रस्ताव यानी GR जारी किया जाए। ये मामला काफी पुराना है और मराठा समुदाय लंबे समय से इस आरक्षण की मांग करता आ रहा है। जरांगे इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे बनकर उभरे हैं।
सरकार और प्रशासन की चिंता बढ़ी
इस पूरे प्रदर्शन ने महाराष्ट्र सरकार और प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है। एक तरफ तो कोर्ट और पुलिस का दबाव है, दूसरी तरफ प्रदर्शनकारी डटे हुए हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अभी तक इस मामले में कोई बड़ा बयान देते नहीं दिखे हैं, लेकिन जरांगे ने सीधे तौर पर उन्हें चेतावनी दी है। ऐसे में सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती पैदा हो गई है। अगर सरकार मांगें मानती है तो ये दूसरे समुदायों के विरोध का कारण बन सकता है, और अगर नहीं मानती तो ये आंदोलन और भी बड़ा रूप ले सकता है।
जनता पर क्या असर पड़ रहा है
इस प्रदर्शन का सीधा असर मुंबई की जनता पर पड़ रहा है। दक्षिण मुंबई के इलाकों में ट्रैफिक जाम की वजह से लोगों को ऑफिस और काम पर जाने में काफी दिक्कत हो रही है। स्थानीय दुकानदारों और व्यापारियों का काम भी प्रभावित हुआ है। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर इस बात की शिकायत की है कि उन्हें घंटों ट्रैफिक में फंसे रहना पड़ा। वहीं, कुछ लोग प्रदर्शनकारियों के समर्थन में भी हैं और उनका कहना है कि आरक्षण की मांग जायज है।
आगे की रणनीति क्या है
अब सवाल ये है कि आगे क्या होगा। जरांगे और उनके समर्थकों ने साफ कर दिया है कि वे हटने वाले नहीं हैं। वे बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख करेंगे और पुलिस के फैसले को चुनौती देंगे। अगर कोर्ट भी उनके खिलाफ फैसला सुनाता है तो स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। दूसरी तरफ, सरकार को भी कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है ताकि स्थिति को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाया जा सके। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार को बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए।
मराठा आरक्षण का इतिहास
मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग नई नहीं है। पिछले कई सालों से ये मुद्दा गर्माया हुआ है। महाराष्ट्र सरकार ने 2018 में मराठा समुदाय को 16% आरक्षण देने का फैसला किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में इसे खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि ये आरक्षण 50% की सीमा से अधिक है और इसे बरकरार नहीं रखा जा सकता। इसके बाद से ही मराठा समुदाय में नाराजगी है और वे फिर से आरक्षण की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं।
राजनीतिक दलों की भूमिका
इस पूरे मामले में राजनीतिक दलों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ गठबंधन और विपक्ष दोनों ही मराठा समुदाय के वोटों पर नजर गड़ाए हुए हैं। ऐसे में कोई भी पार्टी सीधे तौर पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ नहीं बोलना चाहती। हालांकि, कुछ नेताओं ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन का समर्थन किया है, लेकिन हिंसा और नियमों के उल्लंघन की निंदा की है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार को इस मामले में संवेदनशीलता दिखानी होगी।
सामाजिक प्रभाव
इस आंदोलन का सामाजिक प्रभाव भी काफी गहरा है। मराठा समुदाय महाराष्ट्र की राजनीति और समाज में एक प्रमुख स्थान रखता है। ऐसे में उनकी मांगों को नजरअंदाज करना आसान नहीं है। वहीं, दूसरी तरफ ओबीसी समुदाय भी है जो ये मानता है कि अगर मराठों को ओबीसी कोटा में शामिल किया गया तो इससे उनके हिस्से का आरक्षण कम हो जाएगा। इस तरह से ये मामला दो बड़े समुदायों के बीच टकराव का कारण बन सकता है।
मीडिया की भूमिका
मीडिया इस पूरे मामले पर पैनी नजर बनाए हुए है। हर छोटी-बड़ी खबर का लाइव कवरेज किया जा रहा है। जरांगे के हर बयान और पुलिस की हर कार्रवाई को मीडिया में काफी जगह मिल रही है। सोशल मीडिया पर भी #MarathaReservation और #ManojJarange ट्रेंड कर रहे हैं। लोग अपने-अपने विचार साझा कर रहे हैं। कुछ लोग प्रदर्शन का समर्थन कर रहे हैं, तो कुछ इसे गलत बता रहे हैं।
अंतिम निर्णय क्या होगा
अब सबकी नजरें बॉम्बे हाईकोर्ट पर टिकी हैं। कोर्ट क्या फैसला सुनाता है, ये तो time ही बताएगा। लेकिन अगर कोर्ट प्रदर्शनकारियों के पक्ष में फैसला सुनाता है तो ये जरांगे के लिए एक बड़ी जीत होगी। वहीं, अगर कोर्ट पुलिस के फैसले को सही ठहराता है तो प्रदर्शनकारियों के सामने चुनौती और बढ़ जाएगी। ऐसे में उनके पास या तो कोर्ट के आदेश का पालन करना होगा या फिर और आक्रामक तरीके अपनाने होंगे।
जनता की राय
सड़कों पर घूमते हुए अगर आम लोगों से बात की जाए तो राय विभाजित नजर आती है। कुछ लोगों का कहना है कि आरक्षण की मांग जायज है और सरकार को इसे मानना चाहिए। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह के प्रदर्शन से जनता की परेशानी होती है और ये गलत है। कुछ लोग तो ये भी कह रहे हैं कि आरक्षण की बजाय सरकार को शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए।
निष्कर्ष और भविष्य
अभी तक तो situation बहुत tense है और कुछ भी कहा नहीं जा सकता। जरांगे अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और सरकार भी पीछे हटती नजर नहीं आ रही। ऐसे में आने वाले कुछ घंटे और days बहुत important हैं। अगर दोनों पक्षों के बीच बातचीत का रास्ता नहीं निकला तो situation और भी बिगड़ सकती है। आम जनता को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि शांतिपूर्ण तरीके से इस मामले का हल निकलेगा।
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