चंद्र ग्रहण 2025 में ये 5 मंदिर होंगे खुले! सूतक काल में भी दर्शन कर सकेंगे भक्त, जानिए इन मंदिरों का रहस्य और हैरान कर देने वाला इतिहास
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चंद्रग्रहण के समय भी बंद नहीं होंगे ये 5 मंदिर, नहीं मान्य होगा सूतक
आज रात जब पूरा देश चंद्र ग्रहण के सूतक काल का पालन करेगा, जब हर तरफ मंदिरों के कपाट बंद हो जाएंगे, तब कुछ ऐसे रहस्यमयी मंदिर हैं जहां भक्तों के लिए द्वार हमेशा की तरह खुले रहेंगे। जी हां, आपने सही सुना! भारत की पवित्र भूमि पर कुछ ऐसे अद्भुत मंदिर हैं जहां न तो सूतक लगता है और न ही ग्रहण का कोई प्रभाव पड़ता है। आइए आज हम आपको बताते हैं उन पांच चमत्कारी मंदिरों के बारे में जहां चंद्र ग्रहण 2025 के दौरान भी पूजा-अर्चना होती रहेगी और भक्तों को दर्शन का मौका मिलेगा।
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महाकालेश्वर मंदिर
उज्जैन का तो सभी ने नाम सुना होगा। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसकी महिमा अपरंपार है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव स्वयं विराजमान हैं और उन पर न तो किसी ग्रहण का असर होता है और न ही सूतक का। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि एक बार की बात है जब ग्रहण लगा था और मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए थे। तभी अचानक मंदिर से आवाज आई "मैं तो खुला हूं, मेरे दर्शन क्यों रोके जा रहे हैं?" उस दिन के बाद से ही इस मंदिर में कभी भी ग्रहण के दौरान कपाट नहीं बंद किए जाते। भक्तों का मानना है कि महाकाल ही काल के स्वामी हैं, उन पर काल का प्रभाव कैसे पड़ सकता है?काशी विश्वनाथ
मंदिर का नाम लेते ही मन में एक अलग ही श्रद्धा उमड़ आती है। यह मंदिर न केवल spiritual energy का केंद्र है बल्कि यहां का नियम भी बहुत अनोखा है। ग्रहण लगने से ठीक ढाई घंटे पहले मंदिर के कपाट भक्तों के दर्शन के लिए बंद कर दिए जाते हैं, लेकिन ग्रहण की अवधि में पूजा-अर्चना निरंतर चलती रहती है। मान्यता है कि भगवान विश्वनाथ यक्ष, देवता, गंधर्व सभी के स्वामी हैं, इसलिए सूतक का प्रभाव उन पर नहीं पड़ता। काशी की यही खासियत है कि यहां मृत्यु भी मोक्ष देती है, तो ग्रहण का भय कैसा?बिहार के गया स्थित विष्णुपद
मंदिर की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। यहां भगवान विष्णु के पदचिन्हों की पूजा होती है। कहते हैं कि जब ग्रहण लगता है तो पितृों की आत्माएं अधिक सक्रिय हो जाती हैं और उन्हें तर्पण की आवश्यकता होती है। ऐसे में इस मंदिर के कपाट बंद करना उचित नहीं माना जाता। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब राहु-केतु चंद्रमा को ग्रस्त करते हैं, तब भगवान विष्णु अपने भक्तों की रक्षा के लिए यहां विशेष रूप से विराजमान होते हैं। इसलिए इस मंदिर में ग्रहण के समय भी दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है।केरल के थिरुवरप्पु
मंदिर की कहानी तो बड़ी ही अनोखी है। यहां स्थापित भगवान कृष्ण की मूर्ति को बहुत भूख लगती है और अगर भोग समय पर न लगाया जाए तो मूर्ति दुबली होने लगती है। कहा जाता है कि एक बार सूर्यग्रहण के दौरान मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए थे और भगवान को भोग नहीं लगाया जा सका। अगले दिन जब कपाट खुले तो लोगों ने देखा कि भगवान की कमरपेटी भूख के कारण ढीली होकर गिर गई थी। तभी से इस मंदिर में सूतक काल मान्य नहीं होता और ग्रहण में भी मंदिर खुला रहता है। भक्त मानते हैं कि भगवान तो सर्वशक्तिमान हैं, उन्हें भूख लगे और हम भोग न लगाएं, यह कैसे संभव है?राजस्थान के बीकानेर स्थित लक्ष्मीनाथ
मंदिर की कहानी भी कम रोचक नहीं है। यहां एक बार ग्रहण के दौरान मंदिर के पुजारी ने भगवान की आरती नहीं की थी और न ही भोग लगाया था। उस रात पास में स्थित एक हलवाई के सपने में भगवान प्रकट हुए और भूख लगने की शिकायत की। अगले दिन जब यह बात फैली तो लोगों ने मंदिर प्रशासन से गुहार लगाई और तभी से यहां ग्रहण के समय भी मंदिर के कपाट खुले रहने लगे। महाराजा राव लूनकरण द्वारा बनवाए गए इस मंदिर की वास्तुकला देखते ही बनती है, लेकिन इससे भी ज्यादा दिलचस्प है यहां का अनोखा नियम।इन मंदिरों के इतिहास और रहस्यों को जानने के बाद एक सवाल मन में उठता है कि आखिर क्यों ये मंदिर सूतक काल के नियमों से अलग हैं? spiritual experts के अनुसार इसके पीछे गहरा विज्ञान छिपा है। दरअसल, ये सभी मंदिर ऊर्जा के such powerful centers हैं कि वहां negative energy प्रवेश ही नहीं कर पाती। ग्रहण के समय जब पृथ्वी पर negative energy का प्रभाव बढ़ जाता है, तब ये मंदिर positive energy का संचार करते रहते हैं। इसलिए इनमें सूतक काल मान्य नहीं होता।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो इन मंदिरों की geographical location ऐसी है कि यहां electromagnetic energy बहुत strong है। इसकी वजह से यहां के वातावरण पर ग्रहण का प्रभाव नगण्य होता है। कुछ researchers का मानना है कि इन मंदिरों के निर्माण में जो विशेष पत्थरों का use किया गया है, वे cosmic energy को absorb करने की capacity रखते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन मंदिरों में स्थापित देवता इतने शक्तिशाली हैं कि वे किसी भी प्रकार की negative energy को अपने आस-पास भी नहीं भटकने देते। भक्तों का विश्वास है कि इन मंदिरों में दर्शन करने से ग्रहण का अशुभ प्रभाव भी समाप्त हो जाता है। इसीलिए ग्रहण के समय इन मंदिरों में दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है।
आज जब पूरा देश चंद्र ग्रहण 2025 के सूतक काल का पालन करेगा, तब इन मंदिरों के कपाट भक्तों के लिए खुले रहेंगे। यह बात not only faith की है बल्कि हमारे पूर्वजों की deep scientific understanding की भी है। हमारे ऋषि-मुनियों ने जान लिया था कि कुछ स्थान ऐसे हैं जहां cosmic events का प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए उन्होंने इन मंदिरों को सूतक से मुक्त रखने की परंपरा शुरू की।
चंद्र ग्रहण 2025 और 5 रहस्यमयी मंदिर – FAQ
❓ Q1: चंद्र ग्रहण 2025 के दौरान मंदिर क्यों बंद किए जाते हैं?
👉 हिंदू परंपरा के अनुसार ग्रहण के समय सूतक काल मान्य होता है। इसे अशुभ समय माना जाता है, इसलिए मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और पूजा-अर्चना रोक दी जाती है।
❓ Q2: क्या भारत में ऐसे मंदिर हैं जो ग्रहण के समय बंद नहीं होते?
👉 जी हां, भारत में कुछ चमत्कारी मंदिर ऐसे हैं जहां न तो सूतक काल मान्य होता है और न ही ग्रहण का प्रभाव। इन मंदिरों में पूजा-अर्चना निरंतर चलती रहती है।
❓ Q3: कौन-कौन से मंदिर चंद्र ग्रहण 2025 के दौरान खुले रहेंगे?
👉 ये 5 प्रमुख मंदिर ग्रहण के समय भी खुले रहेंगे:
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महाकालेश्वर मंदिर (उज्जैन, मध्य प्रदेश)
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काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
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विष्णुपद मंदिर (गया, बिहार)
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थिरुवरप्पु कृष्ण मंदिर (केरल)
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लक्ष्मीनाथ मंदिर (बीकानेर, राजस्थान)
❓ Q4: महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन में ग्रहण के समय कपाट क्यों नहीं बंद होते?
👉 मान्यता है कि महाकाल स्वयं काल के स्वामी हैं, उन पर समय और ग्रहों का प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए यहां ग्रहण और सूतक का कोई असर नहीं माना जाता।
❓ Q5: काशी विश्वनाथ मंदिर में ग्रहण के समय क्या परंपरा है?
👉 ग्रहण से ढाई घंटे पहले कपाट बंद कर दिए जाते हैं, लेकिन पूजा-अर्चना निरंतर चलती रहती है। भक्तों का विश्वास है कि भगवान विश्वनाथ पर सूतक का प्रभाव नहीं पड़ता।
❓ Q6: गया के विष्णुपद मंदिर में ग्रहण के समय विशेष पूजा क्यों होती है?
👉 मान्यता है कि ग्रहण काल में पितृ आत्माएं सक्रिय होती हैं और उन्हें तर्पण की आवश्यकता होती है। इसीलिए विष्णुपद मंदिर में कपाट खुले रहते हैं और पूजा का विशेष महत्व होता है।
❓ Q7: थिरुवरप्पु कृष्ण मंदिर (केरल) में सूतक क्यों नहीं माना जाता?
👉 कथा के अनुसार, एक बार ग्रहण के दौरान भगवान को भोग नहीं लगाया गया और अगली सुबह मूर्ति की कमरपेटी ढीली पाई गई। तब से यहां ग्रहण में भी भोग और पूजा निरंतर होती है।
❓ Q8: बीकानेर का लक्ष्मीनाथ मंदिर ग्रहण में क्यों खुला रहता है?
👉 मान्यता है कि एक बार ग्रहण के दौरान भोग न लगाने पर भगवान ने एक हलवाई के सपने में प्रकट होकर भूख की शिकायत की। तब से यहां ग्रहण में भी कपाट बंद नहीं होते।
❓ Q9: इन मंदिरों को सूतक काल से मुक्त क्यों माना जाता है?
👉 धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इन मंदिरों में स्थापित देवता इतने शक्तिशाली हैं कि उन पर किसी भी ग्रहण या नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं होता।
❓ Q10: वैज्ञानिक दृष्टि से इन मंदिरों में ग्रहण का असर क्यों नहीं होता?
👉 शोधकर्ताओं का मानना है कि इन मंदिरों की भौगोलिक स्थिति और विशेष पत्थरों का उपयोग इन्हें शक्तिशाली ऊर्जा केंद्र बनाता है। यहां की cosmic और electromagnetic energy इतनी प्रबल है कि ग्रहण का प्रभाव नगण्य हो जाता है।