रूस-यूक्रेन वार: क्या 30 देशों की सुरक्षा गारंटी यूक्रेन को बचा पाएगी? जानिए पश्चिम की वो रहस्यमयी चाल जो बदल सकती है युद्ध का रुख!
Russia-Ukraine War अब एक ऐसे नाजुक मोड़ पर पहुंच चुका है जहां हर तरफ सिर्फ सवाल ही सवाल नजर आ रहे हैं। यूक्रेन की सरकार लगातार यही मांग कर रही है कि बिना ठोस सुरक्षा गारंटी के वो रूस के साथ कोई भी शांति समझौता नहीं करेगी। और अब खबरें ये आ रही हैं कि यूरोप और अमेरिका मिलकर एक ऐसा प्लान बना रहे हैं जिसमें 30 से ज्यादा देश यूक्रेन को सुरक्षा देने पर राजी हो गए हैं। पर सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ये सुरक्षा गारंटी सचमुच में यूक्रेन के लिए एक सुरक्षा कवच बन पाएगी या फिर ये सिर्फ कागजी घोड़े साबित होंगे? Russia-Ukraine War का ये नया चैप्टर बेहद ही ड्रामाई और सस्पेंस से भरा हुआ है।
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| Russia-Ukraine War के बीच यूक्रेन को मिली सुरक्षा गारंटी? जानिए क्या है यूरोप और अमेरिका की प्लानिंग। शांति समझौता या नया संघर्ष? पूरी जानकारी यहाँ। |
क्या है ये सुरक्षा गारंटी का पूरा मामला
दरअसल, ये कोई नई बात नहीं है, यूक्रेन पिछले कई महीनों से लगातार अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपनी सुरक्षा को लेकर गारंटी मांग रहा था। उसका कहना है कि अगर उसे भविष्य में फिर से रूस के हमले का सामना नहीं करना है तो उसे एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे की जरूरत है। अब जाकरकर यूरोप और अमेरिका ने इसपर सिरियसली विचार करना शुरू किया है। इस Russia-Ukraine War में सुरक्षा गारंटी का मतलब है कि अगर भविष्य में रूस फिर से यूक्रेन पर हमला करता है तो इन 30 देशों की सेनाएं यूक्रेन की मदद के लिए पहुंचेंगी। पर यहां पर सबकुछ उतना सिंपल नहीं है जितना दिख रहा है।
जेलेंस्की की मांग और पश्चिम की दुविधा
यूक्रेन के प्रेसिडेंट वोलोदिमीर जेलेंस्की का तो साफ साफ कहना है कि उन्हें सिर्फ वादों और बयानबाजी से काम नहीं चलेगा। उन्हें चाहिए ठोस कदम। वो चाहते हैं कि पश्चिमी देश अपनी सेना की टुकड़ियां यूक्रेन की जमीन पर तैनात करें ताकि रूस किसी भी तरह के नए हमले से पहले सौ बार सोचे। लेकिन पश्चिमी देशों की अपनी मजबूरियां हैं। उन्हें डर है कि अगर उन्होंने यूक्रेन में अपनी सेना भेजी तो Russia-Ukraine War और भी ज्यादा भयंकर रूप ले सकता है और शायद तीसरे विश्वयुद्ध तक की स्थिति बन सकती है। ये डर ही उनकी सबसे बड़ी रुकावट है।
यूरोप के दिल में क्या चल रहा है असल में
यूरोपीय देशों की स्थिति बड़ी अजीब है। एक तरफ तो वो यूक्रेन की मदद करना चाहते हैं ताकि Russia-Ukraine War जल्द से जल्द खत्म हो सके। वहीं दूसरी तरफ उन्हें रूस से सीधे टकराव का डर भी सता रहा है। खासकर वो देश जिनकी सीमाएं सीधे यूक्रेन से लगती हैं जैसे पोलैंड, रोमानिया, लिथुआनिया। उन्हें लगता है कि अगर रूस नाराज हुआ तो सबसे पहले उनपर ही हमला होगा। इसलिए यूरोपीय नेता चाहते हैं कि सुरक्षा गारंटी का फॉर्मूला ऐसा हो जिसमें उन्हें सीधे सैन्य टकराव में ना उलझना पड़े। बस यही दुविधा इस पूरे Russia-Ukraine War को और जटिल बना रही है।
ट्रंप की नजर में क्या है अमेरिका की भूमिका
अमेरिका के पूर्व प्रेसिडेंट और अब चुनावी रेस में शामिल डोनाल्ड ट्रंप ने इस मामले पर एक अलग ही राय रखी है। उनका कहना है कि अमेरिका को कोऑर्डिनेटर की भूमिका निभानी चाहिए ना कि लीडर की। उन्होंने यूरोप के देशों पर जोर डाला है कि उन्हें अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी और यूक्रेन की मदद के लिए आगे आना होगा। ट्रंप की इस सोच से साफ जाहिर होता है कि अमेरिका अब Russia-Ukraine War में direct military involvement से बचना चाहता है। ये एक तरह से अमेरिकी फॉरेन पॉलिसी में बड़ा बदलाव है।
क्या हथियारों के दम पर खरीदी जा सकती है शांति
इसी बीच एक और बड़ी खबर सामने आई है। यूक्रेन ने अमेरिका को 90 अरब डॉलर के हथियार खरीदने का प्रस्ताव दिया है। यूक्रेन का कहना है कि अगर उसे पर्याप्त हथियार मिल जाएं तो वो खुद अपनी रक्षा कर सकता है। पर Russia-Ukraine War ने ये साबित कर दिया है कि सिर्फ हथियारों के बल पर कोई लड़ाई नहीं जीती जा सकती। उसके लिए एक मजबूत इच्छाशक्ति और अंतरराष्ट्रीय समर्थन चाहिए होता है। ट्रंप ने यूक्रेन को हवाई सुरक्षा देने के संकेत दिए हैं लेकिन सेना भेजने से साफ मना कर दिया है।
NATO का आर्टिकल 5 और रूस की प्रतिक्रिया
ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने एक बयान में कहा है कि NATO चार्टर का आर्टिकल 5 यूक्रेन पर भी लागू हो सकता है। मतलब अगर यूक्रेन पर भविष्य में हमला हुआ तो NATO के सदस्य देश मिलकर उसे बचाएंगे। पर सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या रूस इसे मानेगा? रूस तो पहले से ही NATO के विस्तार को लेकर नाराज है। अगर NATO ने यूक्रेन को इस तरह की गारंटी दे दी तो Russia-Ukraine War और भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। रूस इसे अपनी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा मान सकता है।
रूस ने रखी हैं ये कड़ी शर्तें
वहीं दूसरी तरफ रूस ने शांति समझौते के लिए अपनी शर्तें रखी हैं। रूस चाहता है कि यूक्रेन डोनबास और क्रीमिया पर अपना दावा छोड़ दे। साथ ही यूक्रेन अपनी सेना को कमजोर करे और कभी भी NATO में शामिल होने की बात ना करे। पुतिन साफ कह चुके हैं कि वो यूक्रेन में किसी भी पश्चिमी देश की सेना की मौजूदगी बर्दाश्त नहीं करेंगे। Russia-Ukraine War में शांति की संभावना तभी है जब रूस की इन शर्तों को माना जाएगा, वरना ये लड़ाई और लंबी खिंच सकती है।
चुपचाप चल रही हैं बैकडोर मीटिंग्स
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो यूरोप और अमेरिका के नेता इस मुद्दे पर लगातार गुप्त बैठकें कर रहे हैं। इन बैठकों में यही तय होना है कि यूक्रेन को आखिर किस तरह की सुरक्षा गारंटी दी जाए। कुछ देश ज्यादा आगे बढ़कर यूक्रेन की मदद करना चाहते हैं तो कुछ देश रूस से नाराजगी के डर से पीछे हट रहे हैं। ये बैठकें इसलिए भी जरूरी हैं क्योंकि Russia-Ukraine War सिर्फ दो देशों का मामला नहीं रहा, ये पूरी दुनिया की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुका है।
सुरक्षा गारंटी मिलने के क्या होगे परिणाम
अगर यूक्रेन को वाकई में 30 देशों की तरफ से सुरक्षा गारंटी मिल जाती है तो इसके बहुत गहरे नतीजे होंगे। इससे यूक्रेन के लोगों को एक सुरक्षा का अहसास होगा और शायद युद्ध थम सके। लेकिन दूसरी तरफ, रूस इसे अपने लिए एक चुनौती के रूप में ले सकता है और नए सिरे से हमला कर सकता है। ये Russia-Ukraine War का सबसे निर्णायक मोड़ साबित होगा। पूरा यूरोप और अमेरिका एक साथ आकर रूस के खिलाफ खड़े होंगे, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
इतिहास में ऐसे समझौतों का क्या रहा है रिकॉर्ड
अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि ऐसे सुरक्षा गारंटी के समझौते अक्सर फेल हुए हैं। कागज पर सबकुछ बहुत अच्छा लगता है लेकिन जमीन पर हालात बिल्कुल अलग होते हैं। जब सचमुच मदद की जरूरत आती है तो कई देश पीछे हट जाते हैं। क्या Russia-Ukraine War के मामले में भी ऐसा ही होगा? या फिर दुनिया एक सबक सीखेगी? ये तो वक्त ही बताएगा।
रूस की मंजूरी के बिना कुछ भी संभव है क्या
आखिरी बात ये कि बिना रूस की मंजूरी के इस युद्ध में कोई भी समाधान नहीं निकल सकता। रूस ये मानने को तैयार ही नहीं है कि यूक्रेन की वर्तमान सरकार वैध है। पुतिन चाहते हैं कि यूक्रेन में नए चुनाव हों और एक ऐसी सरकार बने जो रूस के हितों के अनुकूल हो। जब तक रूस और यूक्रेन के बीच इस बात पर सहमति नहीं बनती, तब तक Russia-Ukraine War थमने वाला नहीं है। शांति की चाबी रूस के हाथ में ही है।
पब्लिक इम्पैक्ट एनालिसिस – आम जनता पर क्या पड़ेगा असर
इस पूरे मामले का सबसे ज्यादा असर तो यूक्रेन और रूस की आम जनता पर पड़ रहा है। हजारों लोग मारे जा चुके हैं, लाखों बेघर हो चुके हैं। अगर सचमुच सुरक्षा गारंटी मिलती है तो यूक्रेन के लोगों को एक उम्मीद की किरण नजर आएगी। उन्हें लगेगा कि अब दुनिया उनके साथ है। वहीं यूरोप के लोगों को भविष्य की अनिश्चितता का डर सता रहा है। उनकी अर्थव्यवस्था पहले से ही इस युद्ध की वजह से प्रभावित हो रही है। अगर ये लड़ाई और लंबी खिंची तो महंगाई और बढ़ेगी, ऊर्जा संकट गहराएगा। Russia-Ukraine War ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है और इसका अंत कैसे होगा, ये आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को तय करेगा। ये सिर्फ एक युद्ध नहीं, पूरी मानवता के लिए एक सबक है।
