Ganesh Chaturthi 2025: स्थापना में करें ये बातें, गलतियां न करें

गणेश चतुर्थी 2025: ये 10 गलतियां करने से बचें वरना नहीं मिलेगा पूजा का फल! जानिए सही स्थापना विधि

Author & Writer: आज की ताज़ा खबर NEWS - 23 अगस्त 2025


गणेश चतुर्थी का त्योहार आते ही हर घर में खुशियों की लहर दौड़ जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गलत तरीके से की गई पूजा का कोई फल नहीं मिलता? साल 2025 में 27 अगस्त को गणेश चतुर्थी है और इस दिन अगर आपने ये गलतियां कर दी तो गणपति बप्पा नाराज हो सकते हैं। आइए जानते हैं कि किन बातों का ध्यान रखकर आप गणेश स्थापना का पूरा फल पा सकते हैं।

गलत दिशा में मूर्ति स्थापना - सबसे बड़ी भूल


गणेश जी की मूर्ति को हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा में ही स्थापित करना चाहिए। इस दिशा को ईशान कोण कहते हैं और यह भगवान की दिशा मानी जाती है। अगर आप मूर्ति को गलत दिशा में रखेंगे तो पूजा का पूरा फल नहीं मिलेगा। मूर्ति का मुख हमेशा उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है।

खंडित मूर्ति की स्थापना - अशुभ होता है


कभी भी खंडित या टूटी हुई मूर्ति की स्थापना नहीं करनी चाहिए। अगर मूर्ति लाते समय या स्थापना के दौरान टूट जाए तो उसे पूजा में नहीं इस्तेमाल करना चाहिए। खंडित मूर्ति की पूजा करने से घर में अशांति फैलती है और नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। हमेशा पूरी तरह से साबुत और सुंदर मूर्ति ही स्थापित करें।

तुलसी और केतकी का प्रयोग - वर्जित है

गणेश जी को तुलसी के पत्ते और केतकी के फूल कभी नहीं चढ़ाने चाहिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार तुलसी और गणेश जी के बीच श्राप का वर्णन है इसलिए तुलसी का प्रयोग वर्जित है। गणेश जी को दूर्वा घास और गेंदे के फूल अत्यंत प्रिय हैं इसलिए इन्हीं का प्रयोग करना चाहिए। गलत फूल चढ़ाने से पूजा का फल नहीं मिलता।

घर खाली छोड़ना - अनादर होता है

गणेश स्थापना के बाद घर को कभी खाली नहीं छोड़ना चाहिए। गणेश जी को अतिथि के समान माना जाता है और अतिथि को अकेला छोड़ना अनादर होता है। हमेशा घर में किसी न किसी को उपस्थित रहना चाहिए। अगर आपको बाहर जाना भी पड़े तो किसी को घर पर रुकने के लिए कहें। इससे गणेश जी प्रसन्न होते हैं।

ब्रह्मचर्य का पालन न करना - आवश्यक है


गणेश स्थापना के बाद घर के सदस्यों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस दौरान शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखने से पूजा का पूरा फल मिलता है। इस समय किसी भी प्रकार का नशा या अशुद्ध आचरण नहीं करना चाहिए।

गलत समय पर स्थापना - अशुभ माना जाता है


गणेश स्थापना का सही समय चतुर्थी तिथि के दिन मध्याह्न काल में होता है। रात के समय या अमावस्या के दिन स्थापना नहीं करनी चाहिए। सूर्योदय के बाद और दोपहर के समय तक स्थापना करना शुभ माना जाता है। गलत समय पर स्थापना करने से पूजा का पूरा फल नहीं मिलता।

अशुद्ध मन से पूजा - निष्फल होती है


पूजा करते समय मन का शुद्ध होना बहुत जरूरी है। अगर मन में किसी प्रकार की नकारात्मक भावना हो तो पूजा निष्फल हो जाती है। पूजा से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए। मन को एकाग्र करके ही पूजा करनी चाहिए। बिना श्रद्धा और विश्वास के की गई पूजा का कोई फल नहीं मिलता।

मूर्ति का आकार असंतुलित - अशुभ संकेत

गणेश जी की मूर्ति का आकार संतुलित होना चाहिए। बहुत छोटी या बहुत बड़ी मूर्ति की स्थापना नहीं करनी चाहिए। मूर्ति का आकार घर के आकार के अनुसार होना चाहिए। छोटे कमरे में बहुत बड़ी मूर्ति की स्थापना अशुभ मानी जाती है। मूर्ति की प्रोपोर्शन सही होनी चाहिए।

पूजा सामग्री में कमी - अधूरी पूजा


पूजा में इस्तेमाल होने वाली सभी सामग्री पूरी होनी चाहिए। किसी भी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए। पूजा से पहले सभी सामग्री तैयार कर लेनी चाहिए। अधूरी पूजा करने से गणेश जी अप्रसन्न होते हैं। सामग्री में किसी प्रकार की कमी नहीं होनी चाहिए।

विसर्जन के नियम न जानना - महत्वपूर्ण है

विसर्जन के नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है। गलत तरीके से विसर्जन करने से पूजा का फल नहीं मिलता। विसर्जन हमेशा शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए। मूर्ति को जलाशय में विसर्जित करते समय विशेष मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए। गलत तरीके से विसर्जन करने से बचना चाहिए।

सही विधि से स्थापना - step by step guide

सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। कलश स्थापना करके उसमें जल भरें। फिर गणेश जी की मूर्ति को स्थापित करें। मूर्ति के सामने दीपक जलाएं। फिर घी का दीपक जलाकर आरती करें। इसके बाद मोदक और लड्डू का भोग लगाएं।

मंत्रों का सही उच्चारण - आवश्यक है

पूजा के दौरान मंत्रों का सही उच्चारण बहुत जरूरी है। गलत उच्चारण से मंत्र का प्रभाव कम हो जाता है। ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का जाप करना सबसे शुभ माना जाता है। मंत्र जाप करते समय मन को एकाग्र रखना चाहिए। मंत्रों का उच्चारण सही तरीके से करना चाहिए।

पूजा के बाद का व्यवहार - महत्वपूर्ण है

पूजा के बाद का व्यवहार भी बहुत महत्वपूर्ण है। पूजा के बाद प्रसाद सभी में वितरित करना चाहिए। घर के सभी सदस्यों को प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। पूजा के बाद किसी से झगड़ा या बहस नहीं करनी चाहिए। शांत और प्रसन्न मन से रहना चाहिए।

वैज्ञानिक महत्व - क्यों हैं ये नियम जरूरी

इन नियमों का वैज्ञानिक महत्व भी है। उत्तर-पूर्व दिशा में मूर्ति रखने से सूर्य की किरणें सीधे मूर्ति पर पड़ती हैं। दूर्वा घास में औषधीय गुण होते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन करने से मन एकाग्र रहता है। इन नियमों का पालन करने से शारीरिक और मानसिक लाभ मिलते हैं।

पौराणिक कथाएं - नियमों के पीछे की कहानियां

पौराणिक कथाओं के अनुसार तुलसी और गणेश जी के बीच श्राप का वर्णन है। एक कथा के अनुसार गणेश जी ने तुलसी से विवाह करने से मना कर दिया था। इस पर तुलसी ने क्रोधित होकर गणेश जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं होगा। इसलिए तुलसी वर्जित है।

आधुनिक समय में महत्व - क्यों जरूरी हैं ये नियम

आधुनिक समय में भी इन नियमों का महत्व कम नहीं हुआ है। इन नियमों का पालन करने से मानसिक शांति मिलती है। पारिवारिक सद्भाव बढ़ता है। सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इन नियमों का पालन करने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

सामाजिक प्रभाव - समाज पर प्रभाव

इन नियमों का सामाजिक प्रभाव भी है। सही तरीके से पूजा करने से समाज में धार्मिक एकता बढ़ती है। लोगों में आपसी प्रेम और सद्भाव बढ़ता है। धार्मिक अनुष्ठानों से सामाजिक संगठन मजबूत होता है। समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

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