महाराष्ट्र की सत्ता में सनसनी! फडणवीस ने उद्धव को दिया "निमंत्रण", फिर हुई वो गुप्त मुलाकात... अब क्या होगा अगला दांव?
आज की ताज़ा खबर NEWS, 17 जुलाई २०२५: महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर से उबलने लगी है और इस बार आग पूरे जोरों पर है। आज सुबह विधानसभा परिसर में जो कुछ हुआ, उसने सभी की नजरें फिर से मुंबई के विधान भवन पर कर दी हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और शिवसेना (ठाकरे गुट) के प्रमुख उद्धव ठाकरे के बीच अचानक हुई आधे घंटे की उस गुप्त मीटिंग ने राजनीतिक गलियारों में एक तूफान सा ला दिया है। सबसे दिलचस्प बात ये रही कि इस बैठक में आदित्य ठाकरे भी मौजूद थे, जिससे साफ जाहिर होता है कि ये कोई आम चर्चा नहीं थी।
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| महाराष्ट्र राजनीति में भूचाल! देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे की रहस्यमयी मीटिंग ने मचाई खलबली। जानें क्या है त्रिभाषा फॉर्मूले पर विवाद और क्या होगा MVA का अगला कदम? पूरी खबर पढ़ें। |
कहाँ और कैसे हुई ये रहस्यमयी मीटिंग?
ये मुलाकात कोई आम सार्वजनिक मीटिंग नहीं थी। ये बैठक विधान परिषद के सभापति राम शिंदे के कार्यालय में हुई, जहाँ दोनों बड़े नेताओं के बीच लगभग ३० मिनट तक गहन चर्चा चली। बैठक का समय और जगह दोनों ही इतनी गोपनीय रखी गई थी कि जैसे ही इसकी भनक मीडिया को लगी, अटकलों का बाजार गर्म हो गया। हर कोई यही जानना चाह रहा था कि आखिर इतनी गुप्त चर्चा का मकसद क्या है।
फडणवीस का वो 'निमंत्रण' जिसने बदल दिया गेम
इस पूरे मामले की शुरुआत कुछ दिन पहले ही हुई थी जब उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधान भवन में ही विपक्ष के नेता अंबादास दानवे के विदाई कार्यक्रम में एक ऐसा बयान दिया जिसने सबको चौंका दिया। उन्होंने सीधे तौर पर उद्धव ठाकरे को सत्ता में आने का “निमंत्रण” दे डाला। उनके मुंह से निकले शब्द, "आपके लिए भी स्कोप है, आइए यहाँ," ने ही राजनीति की दिशा ही बदल दी। इस एक बयान के बाद से ही कयासबाजी तेज हो गई थी कि भाजपा और शिवसेना (ठाकरे गुट) के बीच कोई बड़ा राजनीतिक समीकरण बनने वाला है।
किताब का गिफ्ट था कोई संदेश?
बैठक के दौरान एक और दिलचस्प मोड़ तब आया जब उद्धव ठाकरे ने देवेंद्र फडणवीस को ‘हिंदी की जबरदस्ती क्यों?’ नामक एक किताब भेंट की। ये कोई मामूली किताब नहीं है, बल्कि ये एक सियासी संदेश की तरह है। दरअसल, इस वक्त पूरे महाराष्ट्र में त्रिभाषा फार्मूला और हिंदी थोपने के मुद्दे पर जबरदस्त विवाद चल रहा है। ये किताब भेंट करना उद्धव ठाकरे का तरीका हो सकता है इस बात को रेखांकित करने का कि वो इस मुद्दे पर समझौता करने वाले नहीं हैं।
क्या था इस मीटिंग का असली एजेंडा?
अंदरूनी सूत्रों की मानें तो इस मीटिंग में कई अहम मुद्दों पर बातचीत हुई। सबसे पहला और बड़ा मुद्दा था विपक्ष के नेता के पद को लेकर। क्या उद्धव ठाकरे विपक्ष के नेता बनने को तैयार हैं? दूसरा बड़ा मुद्दा था त्रिभाषा फार्मूला और हिंदी भाषा की अनिवार्यता पर चल रहा विवाद। तीसरा और सबसे जरूरी मुद्दा था आगे की संभावित राजनीतिक समीकरण और गठबंधन की संभावनाओं पर चर्चा।
सपकाळ की एंट्री ने बढ़ाया मजा
इसी दिन की एक और बड़ी घटना ने इस पूरे मामले को और भी रोमांचक बना दिया। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाळ का भी उद्धव ठाकरे से मिलने पहुंचना किसी से छुपा नहीं है। उनका ये दौरा भी बेहद खास माना जा रहा है क्योंकि महाविकास आघाड़ी की टीम राज्यपाल से मिलने की तैयारी कर रही है। ये मुलाकात जनसुरक्षा विधेयक को लेकर आगे की रणनीति बनाने के लिए हुई है, लेकिन टाइमिंग ने सभी को हैरान कर दिया है।
राज ठाकरे और युती के कयास
इस पूरे घटनाक्रम में एक और लेयर जुड़ गई है और वो है राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की संभावित युती को लेकर चल रही अटकलें। मुंबई में हाल ही में आयोजित विजयी मेळावे के बाद से ही इन दोनों नेताओं के बीच किसी गठबंधन की चर्चाएं जोरों पर हैं। हालांकि, राज ठाकरे की ओर से अब तक कोई स्पष्ट और सीधा रुख सामने नहीं आया है। वो इस मुद्दे पर अभी भी बहुत सावधानी बरतते हुए नजर आ रहे हैं और अपने बयानों में काफी संयम बरत रहे हैं।
क्या इस मीटिंग का मतलब है नया गठबंधन?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ये मीटिंग किसी नए गठबंधन की शुरुआत है? क्या भाजपा और शिवसेना (ठाकरे गुट) एक बार फिर से हाथ मिलाने वाले हैं? या फिर ये सिर्फ एक औपचारिक बातचीत थी? राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। फडणवीस का निमंत्रण और फिर उसके बाद हुई ये गुप्त मीटिंग किसी बड़े बदलाव का संकेत जरूर दे रही है।
त्रिभाषा फार्मूला विवाद क्या है?
ये विवाद इस साल की सबसे बड़ी राजनीतिक issue बन चुका है। केंद्र सरकार के त्रिभाषा फार्मूले के तहत महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य करने का प्रस्ताव है। इस प्रस्ताव का मराठी मानसेवक और शिवसेना समेत सभी क्षेत्रीय दलों ने जमकर विरोध किया है। उद्धव ठाकरे इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाए हुए हैं और उनकी तरफ से ये किताब भेंट करना एक स्पष्ट संदेश है।
महाविकास आघाड़ी की क्या है स्थिति?
महाविकास आघाड़ी यानी MVA जिसमें शिवसेना (ठाकरे), NCP और कांग्रेस शामिल हैं, उसके सामने अभी एक बड़ी चुनौती है। एक तरफ जहां फडणवीस की तरफ से निमंत्रण है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस नेता सपकाळ की मुलाकात भी हुई है। ऐसे में MVA के भविष्य पर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। क्या तीनों दल एक साथ टिके रह पाएंगे?
आदित्य ठाकरे की भूमिका क्या है?
इस पूरी मीटिंग में आदित्य ठाकरे की मौजूदगी भी काफी अहम है। आदित्य ठाकरे अब पार्टी के एक बड़े चेहरे के तौर पर उभर रहे हैं और उनकी राय को अब गंभीरता से लिया जा रहा है। उनकी मौजूदगी से ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि ये कोई रूटीन मीटिंग नहीं थी बल्कि भविष्य की रणनीति पर चर्चा थी।
क्या होगा अगला कदम?
अब सबकी नजरें उद्धव ठाकरे के अगले कदम पर टिकी हैं। क्या वो फडणवीस के निमंत्रण को स्वीकार करेंगे? क्या वो MVA के साथ ही बने रहेंगे? या फिर कोई तीसरा रास्ता निकालेंगे? अगले कुछ दिनों में होने वाली घटनाएं ही इसका जवाब देंगी। एक बात तो तय है कि महाराष्ट्र की राजनीति में अब एक नया और दिलचस्प मोड़ आने वाला है।
जनता पर क्या पड़ेगा असल असर?
आखिर में सबसे जरूरी सवाल यही है कि इन सभी राजनीतिक उठापटक का आम जनता पर क्या असर पड़ेगा? त्रिभाषा फार्मूले का मुद्दा सीधे तौर पर parents और students को प्रभावित करता है। किसी भी तरह के नए गठबंधन से सरकार की नीतियों में बदलाव आ सकता है। जनता की नजर में सत्ता की इस खेल की सबसे बड़ी परीक्षा यही होगी कि इन सबका फायदा आखिरकार उन्हें ही मिलेगा या नहीं।
आपकी क्या है राय?
ये सारा मामला काफी गर्माया हुआ है और हर कोई इस पर अपनी राय रख रहा है। आपकी क्या सोच है इस पूरे मामले को लेकर? क्या आपको लगता है कि उद्धव ठाकरे को फडणवीस का निमंत्रण स्वीकार कर लेना चाहिए? या फिर उन्हें MVA के साथ ही बने रहना चाहिए? त्रिभाषा फार्मूले पर आपका क्या stance है? हमें कमेंट करके जरूर बताएं और इस खबर को शेयर करके दूसरों तक भी पहुंचाएं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी रख सकें। आपकी एक राय महाराष्ट्र के भविष्य को direction दे सकती है।
