जालना-बीड में बंजारा आरक्षण मोर्चा: हैदराबाद गॅझेट के आधार पर ST दर्जे की मांग को लेकर भड़का आंदोलन, सरकार के सामने नया संकट!
महाराष्ट्र के जालना और बीड जिले में बंजारा समाज ने अपने लिए अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा और आरक्षण की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया है। समाज के हजारों लोगों ने जिलाधिकारी कार्यालय का घेराव किया और सड़कों पर उतरकर सरकार को अपनी मांग मानने के लिए मजबूर करने की चेतावनी दी। यह आंदोलन तब और तेज हो गया जब मराठा समाज को हैदराबाद गॅझेटियर के आधार पर कुणबी प्रमाणपत्र देकर ओबीसी आरक्षण दिया गया। बंजारा समाज का कहना है कि उसी हैदराबाद गॅझेट में उन्हें भी 'आदिवासी' बताया गया है, इसलिए उन्हें भी एसटी का दर्जा मिलना चाहिए। अब यह मुद्दा राज्य की राजनीति में एक नया तूफान ला सकता है।
बीड जिला, जो मराठा आरक्षण आंदोलन का गढ़ रहा है, अब बंजारा आंदोलन का केंद्र बन गया है। यहां बंजारा समाज की आबादी लगभग ढाई लाख है और लगभग दो लाख मतदाता हैं। इसीलिए कोई भी राजनीतिक दल इस समाज को नाराज करना नहीं चाहता। स्थानीय सांसद बजरंग सोनवणे से लेकर सभी विधायकों ने इस मांग का समर्थन किया है। अब सरकार के सामने एक नया संकट खड़ा हो गया है। एक तरफ मराठा आरक्षण को लेकर ओबीसी समाज नाराज है तो दूसरी तरफ बंजारा समाज सड़कों पर है। ऐसे में सरकार के लिए हर फैसला एक नई चुनौती बन कर आ रहा है।
हैदराबाद गॅझेटियर की नोंद बन गई नई उम्मीद
बंजारा समाज की एसटी दर्जे की मांग की जड़ में हैदराबाद गॅझेटियर की एक ऐतिहासिक नोंद है। तत्कालीन निजाम सरकार द्वारा प्रकाशित इस गॅझेटियर में बंजारा समाज को साफ-साफ 'आदिवासी' प्रवर्ग का बताया गया है। यही वह दस्तावेज है जिसके आधार पर मराठा समाज को कुणबी प्रमाणपत्र दिए गए और ओबीसी आरक्षण का रास्ता खुला। बंजारा समाज का तर्क सीधा और मजबूत है - अगर उसी दस्तावेज के आधार पर मराठाओं को फायदा मिल सकता है, तो उन्हें क्यों नहीं? समाज के नेता कहते हैं कि यह भेदभावपूर्ण व्यवहार है और सरकार को तुरंत इस अन्याय को दूर करना चाहिए।
वर्तमान में बंजारा समाज को महाराष्ट्र में 'विमुक्त जाती, भटक्या जमाती' (VJNT) के 'A' श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है और उन्हें 3% आरक्षण मिलता है। लेकिन एसटी दर्जा मिलने पर उन्हें 7% आरक्षण मिल सकेगा, जिससे शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में उनकी भागीदारी बढ़ने की उम्मीद है। समाज के युवाओं का कहना है कि दशकों से उन्हें पिछड़ेपन और भेदभाव का सामना करना पड़ा है और अब वक्त आ गया है कि सरकार उनके साथ न्याय करे।
बीड से शुरू हुई चिंगारी अब पूरे राज्य में फैलने लगी है
बंजारा आरक्षण आंदोलन की शुरुआत बीड जिले से हुई, जो राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माना जाता है। गेवराई, माजलगाव और परळी विधानसभा क्षेत्रों में बंजारा मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है, जिससे स्थानीय नेताओं ने भी इस आंदोलन को पूरा समर्थन दिया है। बीड के सांसद बजरंग सोनवणे, विधायक धनंजय मुंडे, सुरेश धस और विजयसिंह पंडित जैसे बड़े नेताओं ने खुलकर समाज का साथ दिया है। विजयसिंह पंडित ने तो यहां तक कहा कि वे विधानसभा के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे को उठाएंगे।
जालना में तो हालात इतने तनावपूर्ण हो गए कि सोमवार को हजारों की संख्या में बंजारा समाज के लोग सड़कों पर उतर आए और जिलाधिकारी कार्यालय का घेराव किया। उन्होंने सरकार को चेतावनी दी कि अगर उनकी मांग नहीं मानी गई तो वे और बड़ा आंदोलन शुरू कर देंगे। नांदेड के देगलूर में भी समाज के लोगों ने तहसीलदार को ज्ञापन देकर अपनी मांग रखी। उन्होंने कहा कि अगर जल्दी न्याय नहीं मिला तो वे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
मराठा आरक्षण का फैसला बन गया मिसाल
बंजारा समाज के आंदोलन की एक बड़ी वजह मराठा आरक्षण पर सरकार का ताजा फैसला है। मनोज जरांगे पाटील के आंदोलन के बाद सरकार ने हैदराबाद गॅझेटियर को लागू करने का फैसला किया, जिससे मराठा समाज को कुणबी प्रमाणपत्र मिल सका। बंजारा समाज इसी दस्तावेज को अपने लिए एसटी दर्जा पाने का आधार बना रहा है। समाज के नेता कहते हैं कि जिस तरह मराठा समाज ने आंदोलन करके अपना हक हासिल किया, उसी तरह अब बंजारा समाज भी सड़कों पर उतरने को तैयार है।
राज्य सरकार के सामने अब एक नया संकट खड़ा हो गया है। एक तरफ ओबीसी समाज मराठाओं को ओबीसी आरक्षण दिए जाने से नाराज है और इंदापुर जैसे places पर उन्होंने विरोध प्रदर्शन भी किए हैं। दूसरी तरफ बंजारा समाज अब एसटी आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन पर उतर गया है। सरकार के लिए अब यह फैसला करना मुश्किल होगा कि वह किसे खुश करे और किसे नाराज।
बंजारा समाज का गौरवशाली इतिहास और संघर्ष भरा सफर
बंजारा समाज का इतिहास बेहद गौरवशाली और पुराना है। इतिहासकारों के अनुसार, यह समाज मूल रूप से राजस्थान के मारवाड़ और राजपूताना इलाके का रहने वाला था। मान्यता है कि मोहम्मद गौरी के हमलों के बाद जब राजपूताना में जीवन अस्त-व्यस्त हो गया, तो इस समाज ने पलायन शुरू किया। उन्होंने अपने साथ अनाज, नमक और अन्य सामानों का व्यापार करने के लिए बैल और अन्य जानवरों के काफिले बनाए और देश के विभिन्न हिस्सों में घूम-घूम कर व्यापार किया।
समय के साथ यह समाज व्यापार के कारण देश के कई राज्यों में बस गया, जिनमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात और मध्य प्रदेश शामिल हैं। इस समाज के भटकते और व्यापारिक जीवन के कारण ही उन्हें 'बंजारा' नाम मिला, जो संस्कृत के शब्द 'वाणिज्य' (व्यापार) से निकला है। बंजारा समाज ने न केवल व्यापार में बल्कि युद्ध क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया है। कहा जाता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना को अनाज और रसद पहुंचाने का काम बंजारा समाज ने ही किया था।
ब्रिटिश काल में बदली बंजारा समाज की किस्मत
अंग्रेजों के शासनकाल में बंजारा समाज की किस्मत ने करवट ली। देश में रेल और नए परिवहन साधनों के विकास से उनके पारंपरिक व्यापार पर गहरा असर पड़ा। उनकी आजीविका छिन गई और वे आर्थिक संकट में फंस गए। सबसे बुरा तब हुआ जब ब्रिटिश सरकार ने कुछ खानाबदोश समुदायों को 'गुन्हेगार जनजाति' घोषित कर दिया, जिनमें बंजारा समाज भी शामिल था।
इस कानून के कारण समाज को भारी अपमान और यातनाएं सहनी पड़ीं। उन्हें हर समय पुलिस की निगरानी में रहना पड़ता था और बिना किसी अपराध के उन पर गुनाहों का इल्जाम लगाया जाता था। इससे समाज की छवि खराब हुई और वे और भी अधिक हाशिए पर चले गए। आजादी के बाद भी इस सामाजिक कलंक का असर समाज पर देखने को मिलता है।
आजादी के बाद मिला VJNT का दर्जा, लेकिन समस्याएं कम नहीं हुईं
स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने बंजारा समाज को 'विमुक्त जाति और नामदार जनजाति' (VJNT) की श्रेणी में रखा। महाराष्ट्र में उन्हें इसी श्रेणी में 3% आरक्षण मिलता है। लेकिन समाज का मानना है कि यह आरक्षण पर्याप्त नहीं है और उन्हें एसटी का दर्जा मिलना चाहिए। देश के कई अन्य राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और राजस्थान में बंजारा समाज को एसटी का दर्जा already मिला हुआ है।
बंजारा समाज आज भी गहरी सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है। अधिकांश समाज के लोग आज भी मजदूरी, ईंट भट्टों पर काम, खेतिहर मजदूरी और निर्माण कार्यों में लगे हैं। शिक्षा का स्तर बेहद निम्न है और बच्चों का स्कूल छूटना एक आम बात है। समाज के नेता मानते हैं कि एसटी दर्जा मिलने से उन्हें शिक्षा और रोजगार के बेहतर अवसर मिल सकेंगे।
मुंबई में हुई उच्चस्तरीय बैठक, आंदोलन की रणनीति तय
बंजारा समाज की मांग को लेकर हाल ही में मुंबई में एक उच्चस्तरीय बैठक हुई, जिसमें समाज के सभी बड़े नेता, धर्मगुरु, महंत और अभ्यासक शामिल हुए। इस बैठक में राज्य सरकार के मंत्री संजय राठोड और इंद्रनील नाईक भी मौजूद थे। बैठक का मुख्य उद्देश्य समाज में इस मुद्दे पर एक राय बनाना और आगे की रणनीति तय करना था।
बैठक में तय हुआ कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए राज्यव्यापी आंदोलन शुरू किया जाएगा। सभी जिलों से सरकार को ज्ञापन भेजे जाएंगे और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे। समाज के नेताओं ने साफ किया कि अगर सरकार ने जल्दी कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो वे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि हैदराबाद गॅझेटियर के आधार पर मराठाओं को जो हक मिला, वही हक बंजारा समाज को भी मिलना चाहिए।
उस्मानाबाद के पूर्व मंत्री संजय राठोड ने बंजारा समाज की पुरज़ोर वकालत की
उस्मानाबाद में पूर्व वन मंत्री और विधायक संजय राठोड ने बंजारा समाज की मांगों को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने बताया कि पूरे राज्य में बंजारा समाज के पांच हज़ार तांडे (बस्तियां) हैं और उनकी आबादी लगभग डेढ़ करोड़ है। समाज के मूलभूत problems आज तक हल नहीं हुए हैं।
राठोड ने कहा कि मौजूदा 3% आरक्षण पर्याप्त नहीं है और समाज को एसटी का दर्जा मिलना चाहिए। उन्होंने एक नया formula पेश किया - मौजूदा एसटी आरक्षण को बिना छेड़े 'आदिवासी ब' (Adiwasi B) नामक एक नया category बनाया जाए, जिसमें बंजारा समाज को आरक्षण दिया जाए। इसके अलावा उन्होंने समाज के लिए 25 अन्य मांगें भी रखीं, जिनमें बंजारा भाषा को 23वीं राजभाषा का दर्जा देना और नॉन-क्रिमिनल सर्टिफिकेट की अनिवार्यता खत्म करना शामिल है।
राजनीतिक दलों पर पड़ेगा बंजारा आंदोलन का असर
बंजारा समाज का आंदोलन महाराष्ट्र की राजनीति पर गहरा असर डाल सकता है। समाज की आबादी लगभग डेढ़ करोड़ है और उनके मतदाता कई जिलों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बीड, जालना, नांदेड, उस्मानाबाद, लातूर जैसे जिलों में तो उनकी मतदाता संख्या किसी भी चुनाव के results बदल सकती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगले विधानसभा चुनावों से पहले कोई भी पार्टी बंजारा समाज को नाराज करना नहीं चाहेगी। यही कारण है कि बीजेपी और शिवसेना के नेताओं ने भी इस मांग का समर्थन किया है। Congress और NCP भी इस मौके का फायदा उठाना चाहेंगी और सरकार पर दबाव बनाएंगी। ऐसे में सरकार के लिए यह फैसला करना मुश्किल होगा कि वह बंजारा समाज की मांग को कैसे handle करे।
सरकार के सामने है बड़ी चुनौती
महाराष्ट्र सरकार के सामने अब एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। एक तरफ मराठा आरक्षण का मुद्दा अभी पूरी तरह हल नहीं हुआ है और वह Supreme Court में लंबित है। दूसरी तरफ ओबीसी समाज मराठाओं को ओबीसी आरक्षण दिए जाने से नाराज है। अब बंजारा समाज की एसटी दर्जे की मांग ने सरकार की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
कानूनी experts का मानना है कि हैदराबाद गॅझेटियर के आधार पर बंजारा समाज को एसटी दर्जा देना आसान नहीं होगा। ST का दर्जा देने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है और उसके लिए एक जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसके लिए राष्ट्रपति की मंजूरी भी जरूरी है। ऐसे में राज्य सरकार के पास limited options हैं।
हैदराबाद गॅझेटियर पर उठ रहे हैं सवाल
हैदराबाद गॅझेटियर को लेकर अब कई सवाल भी उठ रहे हैं। कुछ historians और social scientists का मानना है कि इस दस्तावेज को आधार बनाकर आरक्षण देना ठीक नहीं है। उनका कहना है कि यह गॅझेटियर British era में तैयार किया गया था और उस समय की social conditions अलग थीं।
विरोधियों का तर्क है कि अगर हर समुदाय हैदराबाद गॅझेटियर के आधार पर आरक्षण की मांग करने लगेगा, तो整个 आरक्षण व्यवस्था chaos में बदल जाएगी। उनका कहना है कि आरक्षण का आधार social and educational backwardness होना चाहिए, न कि कोई ऐतिहासिक दस्तावेज।
बंजारा युवाओं में है नई उम्मीद की किरण
बंजारा समाज के युवाओं में इस आंदोलन को लेकर नई उम्मीद जगी है। वे मानते हैं कि एसटी दर्जा मिलने से उन्हें शिक्षा और नौकरी में बेहतर अवसर मिलेंगे। कई युवा leaders social media के through आंदोलन को organize कर रहे हैं और समाज को एकजुट कर रहे हैं।
युवाओं का कहना है कि दशकों से उनके समाज को neglect किया गया है और अब वक्त आ गया है कि उन्हें उनका हक मिले। वे सरकार से demand कर रहे हैं कि वह हैदराबाद गॅझेटियर के आधार पर तुरंत बंजारा समाज को एसटी का दर्जा दे। नहीं तो वे और भी बड़े आंदोलन के लिए तैयार हैं।
बंजारा समाज का आंदोलन महाराष्ट्र की राजनीति और समाज पर गहरा असर डाल सकता है। अगर समाज को एसटी का दर्जा मिलता है, तो इससे existing ST communities के आरक्षण पर असर पड़ सकता है, जिससे नया social conflict पैदा हो सकता है। दूसरी तरफ, अगर सरकार इस मांग को reject करती है, तो बंजारा समाज का आक्रोश और बढ़ सकता है, जिससे राज्य में law and order situation बिगड़ सकती है।
राजनीतिक दृष्टि से यह आंदोलन सभी major parties के लिए एक challenge और opportunity दोनों है। जो party इस मांग का समर्थन करेगी, उसे बंजारा समाज का votes मिल सकता है। लेकिन इससे other communities के votes कम होने का खतरा भी है। 2024 के elections से पहले सभी parties इस issue को handle करने में बहुत cautious रहेंगी।
सामाजिक दृष्टि से, इस आंदोलन ने बंजारा समाज में एक नई जागृति पैदा की है। युवा अब अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा रहे हैं और social media के through organize हो रहे हैं। इससे समाज का political and social empowerment हो रहा है, जो long term में positive results दे सकता है।
बंजारा समाज के आंदोलन ने महाराष्ट्र में एक नया political and social debate शुरू कर दिया है। यह केवल एक समुदाय की आरक्षण की मांग नहीं है, बल्कि social justice और equality की larger लड़ाई है। सरकार को इस मुद्दे को seriously लेना चाहिए और एक balanced approach अपनाना चाहिए। सभी stakeholders के साथ dialogue करके एक ऐसा solution निकालना चाहिए, जो social harmony को बनाए रखते हुए बंजारा समाज की genuine problems को address करे। Readers से appeal है कि वे इस issue को understand करें और social media पर informed discussion में भाग लें। Justice और equality के लिए यह जरूरी है कि हम सभी एक inclusive society बनाने की दिशा में काम करें।
