14 इंच से 14 फीट का सफर… 71 साल में कितने अमीर हुए मुंबई के ‘गोल्डन गणपति’
कैसे हुई शुरुआत? 1954 की पहली मूर्ति की कहानी
साल 1954 में जीएसबी सेवा मंडल ने अपना पहला गणेशोत्सव मनाया था। उस वक्त गणपति की मूर्ति महज 14 इंच की थी और पूजा का सामान भी बहुत साधारण था। किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह छोटी सी शुरुआत एक दिन इतनी बड़ी हो जाएगी। उस वक्त कुछ भक्तों ने मिलकर इसकी शुरुआत की थी और आज यह दुनिया भर में मशहूर हो चुका है।
कौन हैं जीएसबी? सेवा की भावना से जुड़ा मंडल
जीएसबी यानी गौड़ सारस्वत ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने मिलकर इस मंडल की स्थापना की थी। लेकिन आज यह मंडल सिर्फ एक समुदाय तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे मुंबई शहर की शान बन चुका है। इस मंडल का मुख्य उद्देश्य समाज सेवा करना है और लोगों तक भगवान की कृपा पहुंचाना है। यहां हर धर्म और हर समुदाय के लोगों का स्वागत किया जाता है।
मूर्ति निर्माण का रहस्य: कौन बनाता है गोल्डन गणपति?
गोल्डन गणपति की मूर्ति बनाने का काम अविनाश पाटकर और उनकी बेटी गौतमी करते हैं। अविनाश जी का परिवार पिछले 100 साल से मूर्ति निर्माण का काम कर रहा है। वे जेजे स्कूल ऑफ आर्ट के पढ़े हुए हैं और सरकारी नौकरी भी करते हैं लेकिन उनकी असली पहचान गणपति की मूर्तियां बनाने की कला है। वे शुद्ध मिट्टी और घास से मूर्ति बनाते हैं जो पर्यावरण के लिए भी अच्छी है।
सोने चांदी का खजाना: कितने किलो सोना होता है इस्तेमाल?
हर साल गोल्डन गणपति को 60 किलो से ज्यादा शुद्ध सोने और 100 किलो से ज्यादा चांदी के आभूषणों से सजाया जाता है। सोने का चूहा भी होता है जो गणपति का वाहक है। इतना ही नहीं गणपति के मुकुट से लेकर उनके सभी आभूषणों में शुद्ध सोने और चांदी का इस्तेमाल होता है। इसकी कुल कीमत का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।
474 करोड़ का बीमा: क्यों जरूरी है इतना बड़ा बीमा?
गोल्डन गणपति की सुरक्षा के लिए मंडल ने 474.46 करोड़ रुपये का बीमा करवाया है। यह बीमा सिर्फ गणपति के आभूषणों का ही नहीं बल्कि पुजारियों और स्वयंसेवकों का भी है। सोने चांदी की बढ़ती कीमतों और सुरक्षा को देखते हुए हर साल बीमा की रकम बढ़ाई जाती है। पिछले साल यह रकम 400 करोड़ थी जो इस साल बढ़ाकर 474 करोड़ कर दी गई।
भक्तों का सैलाब: कितने लोग आते हैं दर्शन करने?
हर साल गोल्डन गणपति के दर्शन करने के लिए लाखों लोग आते हैं। पिछले साल तो 81,000 से ज्यादा पूजा और सेवाएं की गईं। भक्तों की इस भीड़ को संभालने के लिए 3,500 से 3,800 रजिस्टर्ड स्वयंसेवक काम करते हैं। इन स्वयंसेवकों का जज्बा देखते ही बनता है जो बिना किसी स्वार्थ के सेवा करते हैं।
महाप्रसाद का वितरण: कैसे होता है 18,000 लोगों का भोजन?
गोल्डन गणपति की सबसे खास बात है यहां के महाप्रसाद का वितरण। हर दिन 18,000 से 20,000 लोगों को मुफ्त में भोजन कराया जाता है। इसके लिए रोजाना 1000-1500 किलो चावल और 1000-1300 लीटर रसम बनाई जाती है। रसोई में लगभग 100 लोग काम करते हैं ताकि सभी भक्तों को समय पर भोजन मिल सके।
तुलाभार अनुष्ठान: क्या है ये अनोखी परंपरा?
जीएसबी मंडल की एक अनोखी परंपरा है तुलाभार अनुष्ठान। इसमें भक्त को खाने की चीजों से तोला जाता है और फिर इन चीजों को दान कर दिया जाता है। यह चीजें महाप्रसाद बनाने के काम आती हैं। इस अनुष्ठान का धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही इससे गरीबों को भोजन भी मिलता है।
मढ़स्थान अनुष्ठान: कैसे ठीक होता है पीठ दर्द?
एक और अनोखा अनुष्ठान है मढ़स्थान जिसमें लोग केले के पत्तों पर बचे हुए खाने पर लोटते हैं। मान्यता है कि इससे बीमारियां दूर होती हैं। एक भक्त का कहना है कि इस अनुष्ठान से उनका पुराना पीठ दर्द ठीक हो गया था। हालांकि इसका वैज्ञानिक आधार क्या है यह तो नहीं पता लेकिन लोगों की आस्था है कि इससे आशीर्वाद मिलता है।
नारियल तोड़ने की परंपरा: क्या है महत्व?
सुबह की पूजा के बाद नारियल तोड़ने की परंपरा है। टूटे हुए नारियल को प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है। नारियल तोड़ना समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। भक्त इसे बड़े ही उत्साह के साथ करते हैं और प्रसाद पाकर खुश होते हैं।
मेडिकल कैंप: कैसे मिलती है मुफ्त इलाज?
गणेशोत्सव के दौरान मंडल मेडिकल कैंप भी लगाता है जहां भक्तों को मुफ्त में इलाज मिलता है। डॉक्टर्स और नर्सेज की एक टीम हमेशा तैयार रहती है ताकि किसी को भी किसी प्रकार की समस्या हो तो तुरंत इलाज मिल सके। इससे बुजुर्ग और बीमार लोगों को बहुत मदद मिलती है।
स्वयंसेवकों की भूमिका: कैसे करते हैं सेवा?
मंडल के 3,500 से 3,800 रजिस्टर्ड स्वयंसेवक होते हैं जो पूरे उत्सव के दौरान सेवा करते हैं। ये स्वयंसेवक भक्तों का मार्गदर्शन करते हैं, प्रसाद वितरण करते हैं और सफाई का ध्यान रखते हैं। इनकी सेवा भावना देखकर हर किसी का heart भर आता है।
पिछले साल के रिकॉर्ड: 2024 में क्या हुआ खास?
पिछले साल 2024 में जीएसबी मंडल ने अपना 70वां गणेशोत्सव मनाया था। इस दौरान 81,000 से ज्यादा पूजा और सेवाएं की गईं। भक्तों ने 80 किलो से ज्यादा चांदी अर्पित की जो एक रिकॉर्ड है। भक्तों की संख्या भी पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ देने वाली थी।
आर्थिक पहलू: कैसे चलता है ये भव्य आयोजन?
इतने भव्य आयोजन के पीछे आर्थिक तंत्र भी महत्वपूर्ण है। मंडल को दान और चंदे से funding मिलती है। भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार दान देते हैं। सोना चांदी भी भक्त ही अर्पित करते हैं। मंडल का हर पैसा समाज सेवा और आयोजन पर ही खर्च होता है।
सामाजिक प्रभाव: कैसे बदल रहा है समाज?
जीएसबी मंडल सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं करता बल्कि समाज सेवा के काम भी करता है। गरीबों को भोजन, मुफ्त इलाज और शिक्षा का प्रबंध करना इसका मुख्य उद्देश्य है। इससे समाज में एकता और भाईचारा बढ़ता है। लोगों में सेवा भावना का विकास होता है।
भविष्य की योजनाएं: आगे क्या है प्लान?
मंडल की भविष्य की योजनाओं में और बड़े पैमाने पर समाज सेवा करना शामिल है। अधिक से अधिक लोगों तक मुफ्त भोजन और इलाज पहुंचाना है। साथ ही गणेशोत्सव को और भव्य बनाने की योजना है ताकि अधिक से अधिक भक्तों तक भगवान की कृपा पहुंच सके।
