मुंबई फिर डूबा, आसमान से बरसी आफत और विक्रोली में मौत का मंजर
मुंबई फिर डूबा, आसमान से बरसी आफत का यह मंजर हर किसी को हिला कर रख गया है. वह शहर जो कभी नहीं रुकता, इस बार फिर भारी बारिश की चपेट में आकर ठहर गया. विक्रोली का भूस्खलन, सायन से लेकर चेंबूर तक जलभराव और हर गली मोहल्ले में फंसे लोग. सवाल यही कि कब तक मुंबई हर साल इस बरसाती आफत का शिकार बनती रहेगी.
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| मुंबई फिर डूबा आसमान से बरसी आफत |
विक्रोली का मंजर: मौत का सन्नाटा और डरावनी रात
विक्रोली पश्चिम की जनकल्याण सोसाइटी और वर्षा नगर देर रात अचानक भूस्खलन की चपेट में आ गए. भारी बारिश से पहाड़ी दरकी और देखते ही देखते मिट्टी का पहाड़ कई घरों पर टूट पड़ा. दो लोगों की मौत हो गई और दो लोग गंभीर घायल हो गए. रात का सन्नाटा चीखों से भर गया, बच्चे रोने लगे, महिलाएं घबराकर घर से बाहर भागीं लेकिन कई घर पलभर में मिट्टी में समा गए. लोग कहते हैं कि आवाज इतनी तेज थी जैसे धरती फट गई हो. मलबे में दबे लोगों को निकालने के लिए दमकल और बीएमसी की टीम जुटी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. विक्रोली का यह सन्नाटा लोगों के दिलों में हमेशा डर बनकर रहेगा.
मुंबई की सड़कों पर समंदर जैसा नजारा
सायन, कुर्ला, चेंबूर, अंधेरी, मालाड, दहिसर—हर जगह सड़कें दरिया बन गईं. शुक्रवार रात से लगातार हो रही बारिश ने शहर को थमा दिया. लोकल ट्रेनें घंटों तक खड़ी रहीं, बसें फंसी रहीं और लोग पानी में कमर तक भीगते हुए घरों की ओर पैदल लौटे. बच्चों को स्कूल नहीं भेजा गया, दफ्तरों में छुट्टी कर दी गई. कामकाजी लोग परेशान रहे, छोटे दुकानदारों की दुकानें डूब गईं. मुंबईकर कहते हैं कि यह नजारा किसी डरावने सपने जैसा था, जहां हर गली नदी बन चुकी थी.
रेड अलर्ट की घंटी और बेचैन रात
भारतीय मौसम विभाग ने मुंबई के लिए रेड अलर्ट जारी किया है. अगले 24 घंटे में और बारिश की चेतावनी दी गई है. प्रशासन ने लोगों से घरों से बाहर न निकलने की अपील की है. लेकिन मुंबई के लोगों का कहना है कि सिर्फ अलर्ट से कुछ नहीं होता. हर साल यही हाल होता है, नाले साफ नहीं होते, ड्रेनेज जाम रहता है और थोड़ी सी बारिश में ही शहर थम जाता है. रेड अलर्ट सुनकर लोग और घबराए हुए हैं, क्योंकि किसी को नहीं पता कि अगली सुबह कौन सा इलाका डूब जाएगा और कौन सी दीवार गिर जाएगी.
विक्रोली के जख्म और मासूमों की चीखें
विक्रोली में भूस्खलन के वक्त लोग अपने घरों में सो रहे थे. अचानक जोर की आवाज आई और घर हिलने लगे. एक चश्मदीद ने बताया कि उसने पड़ोस का मकान मिट्टी में दबते देखा और वहां से निकलने की कोशिश की. लेकिन कई लोग निकल ही नहीं पाए. चीखें पूरे मोहल्ले में गूंज रही थीं, बच्चे मां को पुकार रहे थे और मां बच्चे को. मिट्टी का ढेर इंसानों पर भारी पड़ गया. अब वहां सिर्फ टूटे दरवाजे, बिखरे कपड़े और खामोशी है.
रेलवे ट्रैक पर पानी और फंसे हजारों मुसाफिर
मुंबई लोकल जो शहर की लाइफलाइन कहलाती है, बारिश में अक्सर थम जाती है. इस बार भी वही हुआ. सेंट्रल और हार्बर लाइन पर घंटों तक ट्रेनें रुकी रहीं. हजारों यात्री ट्रैकों पर खड़े रहे, कोई छाते के नीचे भीगता रहा तो कोई प्लेटफार्म पर बैठा रहा. कामकाजी महिलाएं और छोटे बच्चे घंटों परेशान हुए. यह पहली बार नहीं है, हर साल यही हाल होता है और सवाल यही है कि कब तक.
अस्पतालों तक पहुंचना मुश्किल
भारी बारिश से सिर्फ सड़कें नहीं डूबीं, अस्पतालों तक पहुंचना भी मुश्किल हो गया. एम्बुलेंसें पानी में फंस गईं, मरीजों को खाट और नाव जैसी चीजों पर ले जाया गया. विक्रोली हादसे के घायलों को नजदीकी अस्पताल पहुंचाने में काफी देर हो गई. डॉक्टरों ने कहा कि अगर समय पर पहुंचा दिया जाता तो शायद एक की जान बच सकती थी.
कश्मीर से मुंबई तक तबाही का सिलसिला
सिर्फ मुंबई ही नहीं, उसी दिन जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में भी भूस्खलन हुआ और कई लोग मारे गए. सेना, एसडीआरएफ और प्रशासन राहत कार्य में जुटे हैं. यह साफ है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में प्राकृतिक आपदाएं लगातार बढ़ रही हैं. कभी बाढ़, कभी भूस्खलन, कभी बादल फटना—लोग हर दिन डर के साए में जी रहे हैं.
प्रशासन का दावा और जनता का गुस्सा
बीएमसी और आपदा प्रबंधन दल का कहना है कि राहत कार्य जारी है. जेसीबी मशीनें मलबा हटा रही हैं, दमकल विभाग अलर्ट पर है और एनडीआरएफ तैनात है. लेकिन जनता का गुस्सा थम नहीं रहा. लोग कह रहे हैं कि अगर नालों की सफाई समय पर होती, अगर पहाड़ियों पर अवैध निर्माण रोका जाता और बारिश से निपटने की तैयारी होती तो यह हादसा टल सकता था.
भावनाओं का तूफान और डर की खामोशी
विक्रोली के लोग आज भी सदमे में हैं. महिलाएं रो रही हैं, बच्चे डरे हुए हैं और बुजुर्ग कह रहे हैं कि अब यहां रहना मुश्किल है. लोगों की आंखों में सिर्फ डर और सवाल है. हर बारिश के साथ यही डर जाग उठता है कि न जाने अगली बार कौन सा इलाका डूबेगा और कौन सा घर गिर जाएगा.
मुंबई का बुनियादी सवाल
हर साल यही हाल क्यों होता है. सड़कें दरिया क्यों बन जाती हैं. नालों की सफाई समय पर क्यों नहीं होती. बिना योजना के निर्माण कब रुकेगा. मुंबई सिर्फ भारत की आर्थिक राजधानी नहीं, यह करोड़ों सपनों का शहर है. लेकिन सपनों का यह शहर हर बरसात में बुरे सपनों जैसा हो जाता है.
मासूमों के सपने और मौत का मलबा
भूस्खलन में जिनकी मौत हुई उनमें छोटे बच्चे भी थे. उनके माता-पिता अब सिर्फ तस्वीरें और यादें देख रहे हैं. मोहल्ले के लोग बताते हैं कि बच्चे खेलते हुए बड़े सपने देखते थे, लेकिन मिट्टी के नीचे उनके सपने भी दब गए. यह मंजर किसी को भी रुला सकता है.
हर बारिश में वही पुराना डर
मुंबईकर कहते हैं कि अब बरसात का मतलब सिर्फ ठंडी हवाएं और चाय नहीं, बल्कि डर भी है. डर कि कहीं छत न गिरे, कहीं सड़क न बह जाए, कहीं ट्रेन न थम जाए. यह डर अब शहर की पहचान बन चुका है. लोग कहते हैं कि आसमान से आफत बरसती है और जमीन पर सिस्टम की लापरवाही मार देती है.
पब्लिक इम्पैक्ट एनालिसिस
मुंबई फिर डूबा, आसमान से बरसी आफत ने सिर्फ दो जिंदगियां ही नहीं छीनीं, बल्कि पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है. यह हादसा बताता है कि कैसे तैयारी की कमी हर साल लोगों की जान ले लेती है. अगर नाले साफ होते, अगर अवैध निर्माण रोके जाते और समय पर चेतावनी दी जाती तो शायद आज यह मौत का मंजर न होता. मुंबई सिर्फ मुंबईकरों की नहीं, पूरे भारत की धड़कन है. लेकिन सवाल यही है कि क्या यह धड़कन हर साल यूं ही डूबती रहेगी.
दोस्तों, यह खबर सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं है. इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि सरकार और प्रशासन तक आपकी आवाज पहुंचे. अपने इलाके में नालों और ड्रेनेज की सफाई पर नजर रखें. आपातकालीन नंबर हमेशा साथ रखें और अपने परिवार को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी खुद उठाएं. आसमान से आफत कब गिरेगी, कोई नहीं जानता, लेकिन हम सब मिलकर नुकसान को कम कर सकते हैं. जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है.
